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________________ १९२/तीर्थंकर चरित्र भी महावीर नहीं बोले। ___ इस पर कालहस्ती ने महावीर को अपने बड़े भाई मेघ के पास भिजवाया। मेघ ने उनको गृहस्थाश्रम में एक बार क्षत्रिय कुंड में देखा था अतः देखते ही उसने पहचान लिया। मेघ ने न केवल महावीर को मुक्त किया अपितु उनका सत्कार किया और उनसे क्षमा याचना भी की। महावीर ने सोचा- मुझे अभी बहुत कर्म क्षय करने है। यहां जगह-जगह परिचित व्यक्ति भी मिल जाते हैं इसलिए अनार्य देश में जाना चाहिए जिससे सर्वथा अपरिचित होने पर कर्म क्षय का अच्छा अवसर मिल सके। ऐसा विचार कर भगवान् ने लाढ़ देश की ओर विहार किया। लाढ़ देश उस समय पूर्ण अनार्य माना जाता था। उस देश के दो भाग थे- वज्र भूमि व शुभ भूमि। इनको उत्तर राढ़ व दक्षिण राढ़ भी कहा जाता था। लाढ़ देश में भगवान् के सामने भयंकर उपसर्ग उपस्थित किये गये, कुछ उपसर्ग (परीषह) इस प्रकार हैं० भगवान् को ठहरने के लिए अनुकूल आवास नहीं मिल पाता। दूर-दूर तक गांव उपलब्ध नहीं होने से भगवान् को भयंकर अरण्य में ही ठहरना पड़ता। ० रूखा-सूखा, बासी भोजन भी मुश्किल से मिलता। ० कभी-कभी गांव में पहुंचने से लोग उन्हें मारने लग जाते और उन्हें दूसरे गांव जाने को बाध्य कर देते। ० लोग उन पर विविध रूप से प्रहार करते, जिससे उनका शरीर क्षत-विक्षत हो गया। ० उन्हें बार-बार गेंद की तरह उछाला गया, पटका गया। ० कुत्ते महावीर को काटने दौड़ते तो लोग उन कुत्तो को रोकते नहीं। अधिकांश तो ऐसे ही थे जो छू-छू कर कुत्तों को काटने के लिए प्रेरित करते। __ इस तरह अनार्य प्रदेश में समभावपूर्वक उपसर्ग सहते हुए महान् कर्म-निर्जरा की। आर्य प्रदेश की ओर पुनः आते हुए सीमा पर पूर्ण कलश नामक अनार्य गांव में पधारे। रास्ते में चोर मिले । चोरों ने अपशकुन समझ कर तीक्ष्ण शस्त्रों से प्रहार करने लिए तत्पर हुए तो इन्द्र ने स्वयं उपस्थित होकर उनके इस प्रयास को विफल कर दिया। आर्य देश में पहुंचकर भगवान् ने मलय देश की राजधानी भद्दिला नगरी पधारे। वहां प्रभु ने चातुर्मास कर चातुर्मासिक तप किया। साधना का छठा वर्ष भद्दिला से विहार कर कदली समागम, जंबू संड होते हुए तंबाय सन्निवेश पधारे। वहां पार्श्व परंपरा के मुनि नंदिषेण से गोशालक की तकरार हो गई। वहां पिय सन्निवेश पधारने पर उन्हें गुप्तचर समझकर पकड़ लिया । परिचय पूछने
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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