SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के नंदीवर्धन - ' भाई ! यह तुम क्या कह रहे हो। अभी माता-पिता के वियोग दुःख को भूला ही नहीं हूं तुम भी छोड़ने की बात कर रहे हो। जब तक हमारा मन स्वस्थ न हो जाये तब तक जाने की बात मत करो।' भगवान् श्री महावीर / १८३ महावीर - बड़े भाई की आज्ञा का उल्लंघन करना ठीक नहीं पर आप मेरी गृहवास की अवधि तो निश्चित कर दे ।' xxsss O \\\ Emmyin नंदीवर्धन- 'कम से कम दो वर्ष तक ।' महावीर दो वर्ष तक गृहवास में और रहे। इस अवधि में उन्होंने त्यागमय जीवन जीया। वे रात्रि भोजन नहीं करते, अचित्त जल पीते, भूमि पर सोते और ब्रह्मचर्य का पालन करते । काय प्रक्षालन में भी अचित्त जल का उपयोग करते । बेले-बेले तप करते। एक वर्ष पूर्ण होने पर नौ लोकांतिक देव सामूहिक रूप से महावीर के पास आये और नमस्कार करके निवेदन किया‘भगवन् । अब आप जनहित में दीक्षा अंगीकार करे और धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करें ।' महावीर ने वर्षीदान प्रारंभ किया । देव सहयोग से प्रतिदिन एक प्रहर तक एक करोड़ आठ लाख मुद्राओं का दान करते । इस तरह पूरे वर्ष तीन अरब अवासी करोड़ अस्सी लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान दिया। वर्षीदान के बाद महावीर के काका सुपार्श्व व भाई नंदीवर्धन ने महावीर के दीक्षा महोत्सव की तैयारियां शुरू
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy