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________________ १८०/तीर्थंकर चरित्र बली होते है। शरीर के छोटे-बड़े होने में कोई अंतर नहीं पड़ता। यह बताने के लिए उन्होंने अपने बाएं पैर के अंगूठे से मेरू पर्वत को जरा सा दबाया तो वह कंपायमान हो उठा। मेरू पर्वत के अचानक प्रकंपित होने से इन्द्र सकपका गये। यह सब जानने के लिए उन्होंने अवधि दर्शन लगाया तो उन्हें पता चला कि स्वयं भगवान् ने अनंतबली होने की बात बताने के लिए अपने अंगूठे से पर्वत को हिलाया है। अभिषेक के बाद बालक को पुनः माता के पास रख लिया। Jili ATAT IMMEN www 15ASHE नगर में उत्सव राजा सिद्धार्थ ने मुक्त हृदय से दस दिन का उत्सव मनाया। प्रजा के आनंद' व उत्साह की सीमा नहीं रही ' क्षत्रिय कुंड की सजावट इंद्र पुरी को भी मात कर रही थी। नागरिकों का कर माफ कर दिया। कैदियों को बंधन मुक्त कर दिया। नाम के दिन पारिवारिक जनों का प्रीतिभोज रखा गया। समस्त पारिवारिक लोगों ने नवजात शिशु को देखकर आशीर्वाद दिया। नाम की परिचर्चा में राजा सिद्धार्थ ने कहा- 'इसके गर्भकाल में धन-धान्य की अप्रत्याशित वृद्धि हुई थी अतः बालक का नाम वर्धमान रखा जाये। सभी ने बालक को इसी नाम से पुकारा । बाद में प्रभु के अन्य नाम- महावीर, श्रमण, ज्ञातपुत्र आदि भी प्रचलित हुए।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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