SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान श्री महावीर/१७७ बीस सागरोपम की आयु थी। सताइसवां भव-भगवान् महावीर भगवान् ऋषभ तीसरे आरे (काल विभाग) के अन्त में हुए थे और भगवान् महावीर ने चौथे आरे के अन्त में जन्म लिया था । इस अवसर्पिणी काल के वे अंतिम तीर्थंकर थे। आज का जैन-दर्शन उनकी वाणी का ही फलित है। भगवान् महावीर इतिहासकारों की दृष्टि में महान् क्रांतिकारी, परम अहिंसावादी तथा उत्कृष्ट साधक थे। उन्होंने पशु-बलि का विरोध किया, जातिवाद को अतात्त्विक माना और दास प्रथा को हिंसाजनक बतलाया। धर्म के ठेकेदारों ने तब धर्म को अपने-अपने कठघरों में बन्द कर रखा था। उस समय जन साधारण तक धर्म का स्रोत प्रवाहित करने का कठिनतम कार्य भगवान् महावीर ने ही किया। स्वयं राजमहल में जन्म लेकर भी दलित वर्ग को गले लगाया, उसे धर्म का अधिकार प्रदान किया। सचमुच भगवान् महावीर अपने युग के मसीहा थे। वैशाली का वैभव भगवान् महावीर के समय वैशाली नगरी का बहुत नाम था। किसी जमाने में वह बड़ी नगरी थी। रामायण में बतलाया गया है कि वैशाली बड़ी विशाल रम्य नगरी थी। जैन आगमों में वर्णन आता है कि बारह योजन लंबी और नौ योजन चौड़ी यह अत्यन्त रमणीय नगरी तीन बड़ी दिवारों से घिरी हुई थी। संसार का सबसे पुरानी गणतांत्रिक शासन प्रणाली उस समय वैशाली में प्रचलित थी। हैहय वंश के राजा चेटक इस गणतंत्र के प्रधान थे। इनके नेतृत्व में वैशाली की ख्याति, वैभव एवं समृद्धि अपने उत्कर्ष पर थी। राजा चेटक के सात पुत्रियां थी, जिन्हें बड़े-बड़े राजाओं के साथ ब्याही गई थी। वे इस प्रकार हैं१. उदयन (सिंधु-सौवीर) प्रभावती २. दधिवाहन (अंग) पद्मावती ३. शतानीक (वत्स) मृगावती ४. चंडप्रद्योतन (अवंती) शिवा ५. नंदीवर्धन (क्षत्रिय कुंडग्राम) - ज्येष्ठा ६. श्रेणिक (मगध) चेलना ७. साध्वी बनी सुज्येष्ठा वैशाली के पश्चिम भाग में गंडकी नदी बहती थी। उसके पश्चिम तट पर स्थित ब्राह्मण कुंड ग्राम, क्षत्रिय कुंड ग्राम, वाणिज्य ग्राम, कमरिग्राम और कोल्लाग सन्निवेश आदि अनेक उपनगर वैशाली के वैभव को वृद्धिंगत कर रहे थे! ब्राह्मण कुंडग्राम और क्षत्रिय कुंड ग्राम एक दूसरे के पूर्व पश्चिम थे। ब्राह्म
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy