SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२/तीर्थंकर चरित्र की आयु पूर्ण कर अपनी जीवन लीला समाप्त की। थोड़ी देर बाद बलरामजी पानी लेकर पहुंचे। काफी देर विलाप किया। लंबे सनय तक कृष्ण के जागने की प्रतीक्षा में रहे। आखिर उनके सारथि सिद्वार्थ ने जो मुनि बनकर देव बन गये थे, आकर समझाया । बलराम जी मुनि बन गये । कठोर साधना कर पांचवें देवलोक में महर्द्धिक देव बने। पांडवों की मुक्ति __श्री कृष्ण के अंतिम आदेश का पालन करते हुए जराकुमार पांडु मथुरा पहुंचे। पांडवों से मिले और द्वारिका दाह, यदु वंश विनाश ओर अपने बाण से श्रीकृष्ण के निधन के समाचार सुनाये। अपने अनन्य उपकारक श्रीकृष्ण की मृत्यु की बात सुनकर पांडव व द्रौपदी विलाप करने लगे। उन्हें कृष्ण के बिना सारा जगत् सूना लगने लगा। उन्हें इस असार संसार से विरक्ति हो गयी। ___आचार्य धर्मघोष पांच सौ मुनियों के साथ पांडु मथुरा पधारे। पांडवों ने प्रवचन सुना और विरक्त हो गये। जराकुमार को राज्य सौंपकर उनके पास दीक्षा ले ली। दीक्षित होते ही पांचों पांडव कठोर तपस्या करने लग गये। पाचों मुनियों के मन में भगवान् के दर्शन करने की भावना जागी। गुरु आज्ञा प्राप्त कर ये प्रस्थित हुए। उज्जंयत गिरि से बारह योजन दूर हस्त कल्प नगर में पधारे । वहा युधिष्ठिर मुनि स्थान पर रहे । शेष चारों मुनि- भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव भिक्षार्थ नगर में निकले। वहां उन्होंने नगर जनों से सुना कि भगवान् अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त कर लिया है, तो बड़े खिन्न हुए। स्थान पर आकर युधिष्ठिर मुनि को निवेदन किया। सबने मिलकर शत्रुजय पर्वत पर संथारा किया और केवल ज्ञान प्राप्त कर सिद्ध, बुद्ध व मुक्त बने । आर्या द्रौपदी भी साधुत्व का पालन करती हुई पंचम देवलोक में देव बनी । इतिहास प्रसिद्ध मुनि थावच्चा पुत्र भी भगवान् के शिष्य बने । शुकदेव संन्यासी भी तत्त्व समझ कर मुनि बने। भगवान् अरिष्टनेमि के शासन काल में अंतिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुए। कंपिलपुर नरेश ब्रह्म पिता व चूलनी माता थी। बचपन बड़ा कष्ट में बीता। आखिर वे छह खंड के चक्रवर्ती सम्राट् बने। निर्वाण भगवान् ने अपने भव-विपाकी कर्मों (वेदनीय, नाम, गोत्र, आयुष्य) का अंत निकट देखकर पांच सौ छत्तीस चरम शरीरी (तद्भव मोक्ष जाने वाले) मुमुक्षुओं के साथ रेवतगिरि पर्वत पर आजीवन अनशन व्रत स्वीकार कर लिया। भगवान् ने तीस दिनों के अनशन में नश्वर शरीर को छोड़कर सिद्धत्व को प्राप्त कर लिया। चौसठ इंद्रों व देवताओं की भारी भीड़ भगवान् के शरीर के निहरण समारोह में आई । जनता की भीड़ का तो ठिकाना ही क्या! जिधर देखो उधर आदमी ही आदमी
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy