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________________ भगवान् श्री अरिष्टनेमि/१४९ सर्वाधिक लाभ द्वारिका को मिला । अनेक बार वे वहां पधारे, पावस प्रवास भी किया। एक बार प्रभु द्वारिका पधारे, तो वासुदेव कृष्ण सहित राज परिवार के लोग व द्वारिका के नागरिक रेवतगिरि पर्वत पर समवसरण में आए। भगवान् ने प्रवचन किया। अनित्य भावना का विशेष विश्लेषण किया। प्रवचन के बाद वासुदेव कृष्ण ने पूछा-'भन्ते ! हर वस्तु अनित्य है, उत्पत्ति के बाद विनाश अनिवार्य है, अतः हमें बतायें कि साक्षात् स्वर्गपुरी सदृश इस द्वारिका का विनाश कब होगा?' भगवान् ने कहा-'आज से बारह वर्ष बाद, दीपायन ऋषि के क्रुद्ध होने के कारण द्वारिका का दहन होगा।' दहन की बात सुनते ही सब कांप उठे। कृष्ण वासुदेव ने पुनः पूछा- भंते ! दीपायन ऋषि द्वारिका का दहन क्यों करेगा ?' प्रभु ने बताया-'मदिरा से उन्मत्त यादव कुमारों के सताने पर ऋषि क्रुद्ध होकर द्वारिका के दहन का निदान करेगा। वह मर कर देव होगा और द्वारिका का दहन करेगा?' कृष्ण ने पूछा-'मेरी मृत्यु किससे होगी?' भगवान्-'जराकुमार के बाण से।' सब स्तंभित थे, विस्मित थे। अनेक व्यक्ति विरक्त होकर दीक्षित हो गये। दीपायन ऋषि स्वयं जंगल में रहने लगे। जराकुमार म्लान मना होकर वनवासी बन गया। मदिरा-निषेध ___ नगर में चारों तरफ एक ही चर्चा थी। सर्वत्र आतंक सा छा गया था। सबने मिलकर निर्णय लिया कि दहन का हेतु मदिरा है तो इसे खत्म कर दो। मद्य के अभाव में ऋषि को कोई सतायेगा नहीं, बिना सताये ऋषि क्यों दहन करेगा? एक मद्य के निषेध से सारी समस्या हल हो जायेगी। इस निर्णय के अनुसार जितना मद्य-संग्रह था उसे दूर जंगलों में गिरवा दिया गया। नया बनाना सर्वथा बन्द करवा दिया तथा द्वारिका की सीमा में मद्य पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया। दीक्षा की दलाली कृष्ण वासुदेव ने द्वारिका-दहन की भविष्यवाणी के बाद द्वारिका में एक उद्घोषणा करवा कर लोगों को सूचित किया-'किसी को अगर दीक्षा लेनी हो तो वह शीघ्रता करे, उनके अगर व्यावहारिक कठिनाई हो तो मैं दूर करूंगा। किसी के माता-पिता वृद्ध हों तो उनकी सेवा मैं करूंगा। अगर किसी की संतान छोटी है तो उसका पालन-पोषण मैं करूंगा। दीक्षा लेने वाले निश्चित होकर दीक्षा लें। मैं अभी गृहस्थ में हूं, अतः व्यावहारिक जिम्मेदारी सारी मैं उठाऊंगा।' इस घोषणा से प्रभावित होकर हजारों व्यक्ति साधु बने।
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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