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________________ १३४ / तीर्थंकर चरित्र मारे गये। कुछ जान बचाकर भाग गये। समरकेतु स्वयं राजकुमार शंख के सैनिकों से घिर गया था । शस्त्र बल समाप्त होने पर बाध्य होकर उसे समर्पण करना पड़ा। लूट का माल भी सारा उसके हाथ लग गया। राजकुमार शंख ने उस सम्पत्ति को सीमावर्ती लोगों को पुनः लौटा दी । पल्लिपति समरकेतु को पकड़ कर विजयी राजकुमार वापिस हस्तिनापुर आ रहे थे, सहसा उन्हें जंगल में विद्याधर मणिशेखर मिला । राजकुमार को देखते ही मणिशेखर भागने की कोशिश करने लगा। अवसर देखकर रोती हुई यशोमती ने राजकुमार को अपने अपहरण की दारुण घटना सुनाई तथा मणिशेखर से बचाने की प्रार्थना की। मणिशेखर बलपूर्वक उसकी इच्छा के विपरीत शादी करना चाहता था । राजकुमार शंख ने मणिशेखर को समझाया और न मानने पर युद्ध प्रारंभ कर दिया । मणिशेखर युद्ध में पराजित होकर भाग गया। राजकुमारी यशोमती राजकुमार शंख के अद्भुत शौर्य से अत्यधिक प्रभावित हुई। इतने में उसके पिता जितारि भी उसकी खोज करते-करते वहां पहुंच गये। सारी बात सुनकर वे अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा कन्या की इच्छा देखकर राजकुमार शंख के साथ जंगल में ही उनका विवाह कर दिया । राजा श्रीषेण को विजय के साथ पुत्र आगमन की सूचना मिली । वे प्रसन्न होकर पुत्र के सामने आये तथा विजयोल्लास के साथ नगर में प्रवेश करवाया । पुत्र के शौर्य की महिमा सुनकर राजा अत्यधिक प्रसन्न हुए । योग्य देखकर उसी में पुत्र का राज्याभिषेक किया और स्वयं अणगार बनकर उत्कृष्ट साधना लगे। कुछ वर्षों में उन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया । उत्सव राजा शंख कुशलता से राज्य चलाते रहे। एक बार शहर से दूर जंगल में बने उद्यान में वे सपत्नीक क्रीड़ा करने गये । अनेक मित्र व अनुचर भी उनके साथ में थे। वहीं भोजन तैयार हुआ। शंख बैठे हुए आमोद-प्रमोद की बातें कर रहे थे। इतने में प्यास से व्याकुल एक मुनि आए । शंख ने मुनि को देखते ही खड़े होकर वंदना की। रानी यशोमती भी मुनि को देखकर भावविभोर हो गई। मुनि ने पानी के लिए हाथ से संकेत किया । राजा-रानी समझ तो गये कि मुनि को गहरी प्यास है, किन्तु अचित्त पानी कहां से आये। तभी रानी यशोमती को याद आया रायते में डालने के लिए दाखें (किशमिश ) भिगोई गई थी, उसका पानी अचित्त है अगर गिराया नहीं होगा तो काम आ जाएगा । तत्काल वह रसोई की तरफ गई, देखा तो टोकने में पानी पड़ा था। मुनि को निवेदन किया । शुद्ध जानकर मुनि बहरने लगे । राज शंख व रानी यशोमती ने बर्तन के दोनों ओर के कड़े पकड़ कर साथ में ही मुनि को जल बहराया। जंगल में ऐसा योग मिलने से राजा-रानी दोनों हर्ष
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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