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________________ ११४/तीर्थंकर चरित्र परम्परागत ढंग से देश साधने के लिए चल पड़े। बिना किसी विग्रह के प्रायः हर स्थान पर उनका स्वागत हुआ। पूरे भूमंडल पर उनका एक छत्र साम्राज्य हो गया। छोटे-बड़े बत्तीस हजार देशों पर उनका शासन था। राज्य में कहीं भी गड़बड़ी नहीं थी। सब कुछ व्यवस्थित चल रहा था। दीक्षा चक्री पद के भोगावली कर्म पूरे होने पर उन्होंने अपने उत्तराधिकारी को राज्य सौंपा। शेष सब राजाओं को अधीनता से मुक्त कर उनसे केवल मैत्री सम्बन्ध रखा। कुछ समय पश्चात् वर्षीदान के बाद वैशाख कृष्णा पंचमी को एक हजार विरक्त व्यक्तियों के साथ संयम व्रत स्वीकार किया। दीक्षा के दिन उनके बेले का तप था। उनके अभिनिष्क्रमण की चर्चा सारे भूमण्डल में थी। लोग चकित थे उनके त्याग पर । दूसरे दिन उन्होंने निकटवर्ती नगर चक्रपुर के राजा व्याघ्रसिंह के यहां प्रासुक आहार से पारणा किया। देवों ने पंच द्रव्य प्रकट किये। संयति दान का महत्त्व लोगों को समझाया। उनकी छद्मस्थ साधना सोलह वर्ष तक चली। जिनकल्पी जैसी अवस्था में वे इतने वर्षों तक ग्रामानुग्राम विचरते रहे। विचरते-विचरते पुनः दीक्षा-भूमि में पधारे। उन्होंने वहां भीलक नामक वृक्ष के नीचे शुक्ल ध्यान के दूसरे चरण में घातिक कर्मों को क्षय कर सर्वज्ञता प्राप्त की। देव निर्मित समवसरण में प्रभु ने प्रथम देशना दी। उस समय अनेक व्यक्तियों ने आगार व अणगार धर्म की उपासना स्वीकार की। प्रभु भाव से तीर्थंकर हो गए। निर्वाण लाखों-करोड़ों व्यक्तियों को मोक्ष का सही मार्ग दिखाते हुए अन्त में वे सम्मेद शिखर पर चढ़े तथा एक हजार चरम शरीरी मुनियों के साथ आजीवन अनशन ग्रहण किया। वैशाख कृष्णा एकम के दिन समस्त कर्मों को क्षय करके उन्होंने वहां निर्वाण प्राप्त किया। भगवान् कुंथुनाथ प्रारम्भ में चक्रवर्ती थे, फिर तीर्थंकर बने । धार्मिक व लौकिक दोनों प्रकार के लोगों की उनके प्रति गहरी आस्था थी। उनके शरीर की निहरण क्रिया में देव, दानव तथा मनुष्यों की भारी भीड़ जमा हो गई थीं। भगवान् के निर्वाण से सभी गद्गद् व भारी हृदय के हो रहे थे। निहरण क्रिया के बाद सभी विरक्त भावना से अपने-अपने स्थानों को गए। प्रभु का परिवार ० गणधर ० केवलज्ञानी ३२०० ० मनः पर्यवज्ञानी ३३४० ३५
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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