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________________ अनुक्रम प्रवेश-१ से १३ जैन धर्म की प्राचीनता १, जैन धर्म की अवधारणा २, अध्यात्म को प्रमुखता २, अवतारवाद का निषेध २, कालचक्र ३, यौगलिक युग (अरण्य युग) ४, यौगलिक-जीवन के मुख्य तथ्य ४, कुलकर व्यवस्था ५, . दण्ड व्यवस्था ६, तीर्थंकर की महत्ता ७, 'तीर्थंकर' की मीमांसा ८, तीर्थकर चौबीस ही क्यों ८, तीर्थंकर गोत्र बंध के कारण ६ धर्मशासन की स्थापना १०, द्वादश गुण १०, चौतीस अतिशय ११, पेंतीस वचनातिशय १२. भगवान् ऋषभदेव-१४ से ४२ पूर्व भव १४, ऋषभ का जन्म १६, नामकरण १७, वंश उत्पत्ति १८, विवाह १८, संतान १६, राज्याभिषेक २०, कृषि कर्म शिक्षा २१, छींकी लगाओ २२, अग्नि की उत्पत्ति २२, भोजन पकाना २३, असि-कर्म शिक्षा २३, मसि कर्म शिक्षा २४,.सेवा व्यवस्था २४, वर्ण व्यवस्था २४, तीन रेखाएं (जनेऊ) २५, विवाह २५, ग्राम व्यवस्था २५, दंड विधि २६, कला-प्रशिक्षण (बहत्तर कला, अठारह लिपि, चौसठ कला.) २७, अभिनिष्क्रमण ३१, प्रथम दान ३३, विद्याधरों की उत्पत्ति ३४, सर्वज्ञता-प्राप्ति ३५, भरत का धर्म विवेक ३५, मरुदेवा सिद्धा ३७, तीर्थ स्थापना ३८, अठानवें भाइयों द्वारा दीक्षा ग्रहण ३८, भरत-बाहुबली युद्ध ३६, बाहुबली व भरत को केवल ज्ञान ४०, जैनेतर साहित्य में ऋषभ का वर्णन ४०, निर्वाण ४१, प्रभु का परिवार, झलक व कल्याणक ४१. भगवान् श्री अजितनाथ- ४३ से ४७ पूर्व भव ४३, दो रानियों को चौदह स्वप्न ४३, जन्म ४४, नामकरण ४४, विवाह और राज्य ४४, दीक्षा प्रतिबोध ४५, राज्य त्याग और वर्षीदान ४५ दीक्षा ४५, सगर को वैराग्य ४६, निर्वाण ४७, प्रभु का परिवार, झलक व कल्याणक ४७. ३. भगवान् श्री संभवनाथ-४६ से ५३ पूर्व भव ४६, तीर्थंकर गोत्र का बंध ५०, जन्म ५०, नामकरण ५१, विवाह और राज्य ५१, दीक्षा ५१, निर्वाण ५२, प्रभु का परिवार, झलक व कल्याणक ५२.
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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