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________________ ९८/तीर्थकर चरित्र प्रभु को सर्वज्ञता प्राप्त होते ही देवों ने केवल-उत्सव किया। समवसरण की रचना की। जन्मभूमि व आसपास के हजारों लोग प्रभु को सुनने के लिए एकत्रित हो गए। भगवान् ने उनके बीच प्रथम देशना दी। अनेक व्यक्तियों ने आगार और अणगार धर्म की उपासना स्वीकार की। अप्रतिहत प्रभाव प्रभु के धर्मशासन में धर्म-नीति का प्रभाव उत्कर्ष पर था। प्रत्येक राजा धर्मनीति को ध्रुवकेन्द्र मानकर अपना-अपना राज्य चलाते थे । वासुदेव पुरुषोत्तम स्वयं भगवान् के परम भक्त थे । भगवान् की उपासना से उन्हें सम्यक्-दर्शन प्राप्त हो गया । बलदेव सुप्रभ ने भगवान् के पास दीक्षित होकर सिद्धत्व को प्राप्त कर लिया। जनसाधारण में भगवान् के प्रति अनन्य आस्था थी। निर्वाण भव-विपाकी कर्मों का अंत निकट देखकर सात हजार मुनियों के साथ भगवान् ने अनशन किया तथा चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन समस्त कर्मों का क्षय कर सम्मेद शिखर पर सिद्धत्व प्राप्त किया । भगवान् के निर्वाण क्षण में विश्व सहसा आलोकित हो उठा। एक क्षण के लिए तो नारक जीव भी स्तब्ध रह गये। उनके शरीर की निहरण क्रिया के समय मनुष्यों के साथ-साथ चतुर्विध देवों की भी भारी भीड़ थी। प्रभु का परिवार ० गणधर ० केवलज्ञानी ५००० ० मनः पर्यवज्ञानी ५००० ० अवधिज्ञानी ४३०० ० वैक्रिय लब्धिधारी ८००० ० चतुर्दश पूर्वी १००० ० चर्चावादी ३२०० ० साधु ६६,००० ० साध्वी ६२,००० ० श्रावक २,०६,००० ० श्राविका ४,१४,००० एक झलक० माता सुयशा ० पिता सिंहसेन ० नगरी अयोध्या ५०
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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