SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११) भगवान् श्री श्रेयांसनाथ तीर्थंकर गोत्र का बन्ध अर्धपुष्कर द्वीप के पूर्व महाविदेह के कच्छ विजय की क्षेमा नगरी में राजा नलिनीगुल्म राज्य वैभव को पाकर भी बेचैन रहते थे। सब कुछ पाकर भी उन्हें रिक्तता महसूस होती थी। आज हैं, कल क्या होगा? यह चिंता उन्हें सदैव सताती रहती थी। जीवन में स्थायी शांति मिले, इसलिये उन्होंने राज्य त्यागा, वज्रदंत मुनि के पास दीक्षित हुए, तीव्र तप तपा और परम अध्यात्मभाव से कर्मों की उत्कृष्ट निर्जरा कर तीर्थंकर गोत्र का बंध किया। वहां से पंडित मरण पाकर वे महाशुक्र स्वर्ग में देव बने । जन्म देवायु को पूर्ण भोग कर आर्य जनपद की समृद्ध नगरी सिंहपुर के नरेश विष्णु देव की महारानी विष्णुदेवी की कुक्षि में अवतरित हुए । महारानी को आए चौदह महास्वप्नों से सबको विदित हो गया कि हमारे यहां भुवनभास्कर का उदय होगा । ये स्वप्न असाधारण हैं, इन्हें देखने वाली माता तीर्थंकर या चक्रवर्ती को जन्म देती है । गर्भकाल पूरा होने पर सुखपूर्वक फाल्गुन कृष्णा बारस को प्रभु का प्रसव हुआ राजा विष्णु ने देवेन्द्रों के उत्सव के बाद अदम्य उत्साह से जन्मोत्सव किया । याचकों को जन्म भर के लिये अयाचक बना दिया। राज्य के जेलखाने खाली कर दिये गये। घर-घर में उमंग का वातावरण छा गया । नाम के दिन राजा विष्णु ने उपस्थित जनसमूह को बताया- 'पिछले नौ महिनों में राज्य में हर प्रकार से श्रेयस्कर कार्य हुए हैं। राजवंश के लिए भी ये महिने श्रेयस्कर बीते हैं। जनपद के लिए भी चारों ओर मंगलमय वातावरण रहा है, अतः बालक का नाम 'श्रेयांस' रखा जायें, सभी लोगों ने श्रेयांस कुमार कहकर बालक को पुकारा । . राजा विष्णु ने श्रेयांसकुमार के युवावस्था में आने पर अनेक सुयोग्य राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण करवाया तथा आग्रहपूर्वक राज्याभिषेक
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy