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________________ 'विमलमतिकिरणनिकरप्रभिन्नसच्छिष्यकमलसंघाता: । सकलजगदेकदीपा जयन्ति गुरूभास्करा: भुवने ।।1।।' गुणाकर ने टोका में स्पष्ट किया है - 'सकललोकस्य ज्ञानावबोधाय दीपा दीपप्रायाः स्वगुरवो भास्करा सूर्य्यतुल्याः भुवने लोके जयन्ति सर्वोत्कर्षेण वर्तन्त इत्यर्थः' । गुरु के मत या सिद्धांत रूपी समुद्र से कुछ योमरूपी रत्नों को निकाल कर यह 'रत्नमाला' गूथी गई है 'स्पष्टाक्षरपदसूत्रगुरुमतरत्नाकरात्समुद्धृत्य । ग्रथिता परिस्फुरन्ती निगद्यते योगरत्न मालेयम् ।।2।। इसमें सब अनुभूत योग ही संग्रहित किये गये है। गुणाकार का तो विश्वास है कि इनके संबंध में आशका नहीं करनी चाहिए 'अत्र (अस्मिन्) शास्त्रे श्रीनागार्जुनाचार्येण सर्वेऽप्यनुभूता एवयोगा उक्ता: । अतो नाप्रामाण्यशंका कार्येति ।' (श्लोक 3 पर विवृति में)। स्वयं नागार्जुन ने 'योगरत्नमाला' के उपसंहार-पद्य में लिखा है - 'गुरुमुखतोऽधिगतं यच्छास्त्रान्तरतश्च तन्मया ज्ञातम् । अनुभवमार्गे नीत्वा तन्मध्यात्किच्चिदिह दृष्टम् ।। । 39।। 'आश्चर्यरत्नमाला नागार्जुनविरचिताऽनुभवसिद्धा । सकलजनहृदयदयिता समथिता सूत्रतो जयति ।। 140।।' संदेह होता है कि यह रचना सिद्धनागार्जुन और जैन सिद्ध नागार्जुन में से किस के द्वारा प्रणीत होनी चाहिए ? सिद्धनागार्जुन कृत 'कक्षपुटम्' नामक अन्य तांत्रिक ग्रन्थ मिलता है। उसमें भी 'योगरत्नमाला' की भांति मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन अग्निस्तंभ, जलस्तंभ नादि के तांत्रिक प्रयोग दिये गये हैं । कक्षपुट के अंत में ग्रन्थकार ने अपने को 'सिद्धनागार्जुन' लिखा है - 'इति श्रीसिद्धनागार्जुन विरचिते कक्षपुटे विंशतितमः पटलः ।।1800।। समाप्त ।' 'विवरणम्'- श्रीसिद्धनागार्जुनविरचितसिद्धचामुण्डापरपर्यायः कक्षपुटाभिधो मन्त्रसाघमवशीकरणादिविषयकस्तान्त्रिक निबन्धविशेषः ।' (Dr. R.L. Mitra, Notices No. 256)। ___ 'योगरत्नमाला में कहीं भी नागार्जुन ने अपने को 'सिद्ध' नहीं कहा है । टीकाकार गुणाकरने भी सर्वत्र नागार्जुन को आचार्य नागार्जुन या नागार्जुनाचार्य नाम से लिखा है 'इह शास्त्रारम्भे आचार्य्यनागार्जुनपादा: शिष्टसमयपरिपालनार्थ शास्त्रस्योपादेयतां च दर्शयितु गुरुपादमतिं कुर्वन्तः प्रथमामार्यामाहुः । (ग्रन्थारम्भ में) [ 80 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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