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________________ “यस्य प्रांशुनखांशुजालविसरद्धारांतराविर्भावत्पादाम्भोजरजः पिशंगमुकुट प्रत्यग्ररत्नद्युतिः । संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतोहमद्येत्यलम् स श्रीमाञ्जिनसेनपूज्यभगत्पादो ___जगन्मंगलम् ।।" आचार्य जिनसेन द्वारा रचित 'पार्वाभ्युदय' नामक महान काव्य में सर्ग के अन्त में इस प्रकार का उल्लेख मिलता है - "इत्यमोघवर्षपरमेश्वरपरमगुरुश्रीजिनसेनाचार्यविरचिते मेघदूतवेष्टिते पार्वाभ्युदये भगवत्कैवल्यवर्णनम् नाम चतुर्थः सर्गः इत्यादि ।" अमोघवर्ष ने जैन विद्वानों को भी महान संरक्षण प्रदान किया और अनेक जैन मुनियों को दान दिये। वह स्यादवादविद्या का प्रेमी थी। उसके आश्रित प्रसिद्ध गणिताचार्य महावीराचार्य ने अपने जैन गणित ग्रंथ 'गणितसारसंग्रह' में अमोघवर्ष को स्याद्वादसिद्धांत का अनुकरण करने वाला कहा है। ___ इसके शासनकाल और आश्रय में 'राद्धांतग्रंथ' की 'जयधवला' नामक टीका (ई. 837) की पूर्ति जिनसेन स्वामी ने की। इस टोका का लेखन-प्रारम्भ उनके गुरु वीरसेन स्वामी ने किया था। इसके अतिरिक्त आचार्य शाकटायन पाल्यकीर्ति ने 'शब्दानुशासन' व्याकरण और उसकी अमोघवृत्ति की रचना की। स्वयं सम्राट अमोघवर्ष ने संस्कृत में प्रश्नोत्तर रत्नमाला' नामक नीतिग्रन्थ और कन्नड़ी में 'कविराजमार्ग' नामक छंद अलंकार का शास्त्रग्र थ रचा था । ___'प्रश्नोत्तररत्नमाला' से ज्ञात होता है कि अमोघवर्ष ने अपने पिता के समान ही जीवन के अन्तिमकाल में राज्य त्याग दिया था।1 60 वर्ष राज्य करने के बाद 875-76 ई. के लगभग अपने ज्येष्ठ पुत्र कृष्ण द्वितीय को राज्य सौंप कर अमोघवर्ष श्रावक के रूप में जीवन-यापन करने लगे। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, यही अमोघवर्ष प्रथम नृपतुग वल्लभराय आचार्य उग्रादित्य का समकालीन शासक था। इसका प्रमाण हमें 'कल्याणकारक' की निम्न पंक्तियों में मिलता है। "ख्यातः श्रीनृपतुगवल्लभ-महाराजाधिराजस्थितः । प्रोद्यद्भरिसभांतरे बहुविधप्रख्यात विद्वज्जने ।। मांसाशिप्रकरेन्द्रताखिलभिषग्विद्याविदामग्रतो। मांसे निष्फलतां निरूप्य नितरां जैनेन्द्रवैद्यस्थितम् ।। इत्यशेषविशेषविशिष्टदुष्टपिशिताशिवैद्यशास्त्रेषु मांसनिराकरणार्थमुग्रादित्याचार्य पतुगवल्लभेद्रसभायामुद्घोषितं प्रकरणम् ।” (कल्याणकारक, हिताहिताध्याय, समाप्तिसूचक अंश)। । विबेकात्यक्तराज्येन राज्ञेयं रत्नमालिका । रचिताऽमोघवरण सुधिया सदलंकृतिः ।। (प्र.र.मा.) [ 60 1
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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