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________________ कल्याणकारक (कानड़ी) जगद्दल सोमनाथ ने पूज्यपाद कृत 'कल्याणकारक' का कानडी भाषा में अनुवाद किया था। अतः इसे 'कर्णाटक-कल्याणकारक' कहते हैं। लेखक जैन था । जगद्दल सोमनाथ का काल 1150 ई. है । इसमें ग्रंथ-पीठिका-प्रकरण, परिभाषा-प्रकरण, षोडशज्वर-चिकित्सा-निरूपण प्रकरण आदि अष्टांग वैद्यक का वर्णन है । 'कन्नड़ में चिकित्सा शास्त्र का यह सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में सभी उपचार निरामिष और मद्य-रहित हैं।" इससे स्पष्ट है कि पूज्यपाद के मूल 'कल्याणकारक' में भी मद्य, मांस और मधु का प्रयोग नहीं किया गया था। पूज्यपादकृत मूल 'कल्याणकारक' ग्रन्थ अब प्राप्त नहीं है। वैद्यामृत गोम्मटदेव ने अपने 'मेरूतंत्र' नामक वैद्यक ग्रन्थ में पूज्यपाद को गुरू बताते हुए उनके 'वैद्यामृत' नामक ग्रन्थ का उल्लेख निम्न पंक्तियों में किया है 'सिद्धांतस्य च वेदिनो जिनमते जैनेन्द्रपाणिन्य च । कल्पव्याकरणाय ते भगवते देव्यालियाराधिपा (?)।। श्रीजैनेन्द्रवचस्सुधारसवरैः वैद्यामृतो धार्यते । श्रीपादास्य सदा नमोस्तु गुरवे श्रीपूज्यपादौ मुनेः ॥ संभवतः यह ग्रन्थ कन्नड़ भाषा में रहा होगा। अब यह अनुपलब्ध है । शालाक तंत्र उग्रादित्याचार्य (8वीं शती अन्त) ने अपने 'कल्याणकारक' ग्रंथ में पूज्यपाद के 'शालाक्यतंत्र' का उल्लेख किया है। 'शालाक्यं पूज्यपादप्रकटितम्' (परिच्छेद 20, श्लोक 85)। इसमें अनेक स्थलों पर 'पूज्यपादेन भाषितः' ऐसा लिखा है । नाडीपरीक्षा पूज्यपाद की यह स्वतंत्र रचना या किसी ग्रन्थ का भाग हो सकता है । निदानमुक्तावली यह छः पत्रों का छोटा सा निदान का ग्रन्थ है। इसमें दो प्रकार के अरिष्ट बताये गये हैं-1. कालारिष्ट और 2. स्वस्थारिष्ट । ___ ग्रन्थारंभ में लिखा है 1 पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, कल्याणकारक की भूमिका, पृ. 39-40 2 याजदानी, दकन का प्राचीन इतिहास, पृ. 416 3 जिनरत्नकोष, पृ. 210 [ 49 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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