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________________ गंभीर व्रण आदि लगने पर व्रणकर्म किया जाता था। सुदर्शननगर में मणिरथ नामक राजा राज्य करता था। उसका सहोदर भाई युगबाहू युवराज के पद पर आसीन था। युगबाहु की स्त्री मदनरेखा को लेकर दोनों में मनमुटाव हो गया । एक दिन मणिरथ ने युगबाहु पर तलवार से वार किया, जिससे वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसके घावों की चिकित्सा करने के लिए वैद्य बुलाये गये । वैद्य घावों को भरने के लिए अनेक प्रकार के घृत और तेलों का प्रयोग करते थे। कल्याणघृत, तिक्तघृत और महातिक्तघृत का उल्लेख मिलता है । एक ही औषधि को एक सौ या हजार बार पकाया जाता था । अथवा औषधियों के साथ घृत या तैल को सौ या हजार बार पका कर तैयार किया जाता था, जिसे 'शतपाक' या 'सहस्त्रपाक' कहते थे। हंसतेल भी घाव के लिए उत्तम माना गया था। मरूतेल मरूदेश के पर्वत से मंगाया जाता था। ये सब तेल थकावट दूर करने, वात रोग शांत करने, कण्डू मिटाने और घावों को भरने के लिए प्रयुक्त होते थे । नन्दिपुर में सोरियदत्त नाम का राजा था। उसके गले में मछली खाते समय मछली का कांटा अटक गया। उसने घोषणा करायी कि जो वैद्य या वैद्य-पुत्र इस कांटे को निकाल देगा वह उसे बहुत धन देगा। अनेक वैद्य उपस्थित हुए और उन्होंने वमम, छर्दन, अवपीड़न, कवलग्रह, शल्योद्धरण और विशल्यकरण द्वारा कांटा निकालने का प्रयत्न किया, परन्तु सफलता नहीं मिली । किसी राजा के एक घोड़े के पैर में कंटक चुभ जाने से बहुत कष्ट होता था। वह अदृश्य शल्य से पीड़ित था। वैद्य को दिखाया गया। वैद्य ने घोड़े के शरीर पर कर्दम का लेप कराया । शल्य का स्थान जल्दी ही सूख गया। उसके बाद वैद्य ने शल्य को निकाल दिया। __ किसी राजा की महादेवी को ककड़ियां खाने का शौक था। एक दिन नौकर बड़े आकार की ककड़ी लाया । रानी ने उसे अपने गुह्यप्रदेश में डाल लिया। ककड़ी का कांटा रानी के गुह्यप्रदेश में चुभ गया, और उसका जहर फैल गया। वैद्यों को बुलाया गया। उसने गेहूं के आटे (सामिया=कणिक्का) का लेप कर दिया। कांटे वाले प्रदेश के सूख जाने पर वहां निशान बना दिया। तत्पश्चात् शस्त्रक्रिया द्वारा उसे फोड़ दिया। पीप निकलने के साथ ही कांटा भी बाहर निकल आया। 1 उत्तराध्ययन टीका, पृ. 137 * कल्याणघयं तित्तगं महातित्तगं; निशीथचूर्णी 411566 ' बृहत्कल्पभाष्य 516028-31; 112995 को वृत्ति; निशीथचूर्णीपीठिका 348; 1013197 + विपाकसूत्र 8, पृ. 48 । निशीथचूर्णी 2016393 6 बृहत्कल्पभाष्य।।1050; शल्यनिष्कासन की विधि सुश्रुत सूत्रस्थान प्र.26में दी गई है। [ 35 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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