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________________ (2 नंदीसूत्र (43 टीका) में आगमों के दो वर्गीकरण दिये हैं। प्रथम वर्गीकरण - 1 गमिक-दृष्टिवाद । 2 अगमिक-कालिक-श्रुत-(आचारांग आदि)। द्वितीय वर्गीकरण1 अंगप्रविष्ट (गणध कृत), 2 अंगबाह्य (स्थविश्कृत)। यह वर्गीकरण देवद्धिगणि क्षम श्रमण के समय का है । अंगबाह्य के पुनः दो भेद हैं-1 आवश्यक और 2 आवश्यक व्यतिरिक्त । आवश्यक के 6 और आवश्यकव्यतिरिक्त के 2 भेद हैं-कालिक (उत्तराध्ययन आदि 31 भेद तथा उत्कालिक (दशवकालिक आदि 28 भेद)। अंगप्रविष्ट के 12 (आचारांग आदि द्वादशांग) भेद हैं । तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट और गणधर तथा श्रुतकेवली द्वारा संकलित साहित्य 'अंगप्रविष्ट' तथा आरातीय आचार्यों द्वारा निर्मित आगम अंगों के अर्थ के निकट या अनुकूल होने से 'अंगबाह्य' कहलाये । (3) दिगम्बर मान्यता के अनुसार (तत्वार्थसूत्र, 1/20) आगमों के दो भेद हैं-अंग और अंगबाह्य । (अ) अंग-12 हैं। नाम पूर्वोक्त । 'दृष्टिवाद' को 'भूतवाद' भी कहते हैं। इसके पांच भेद हैं-परिकम, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्व गत और चूलिका । 'परिकर्मके 5 भेद हैं - चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति । 'चूलिका' के भी 5 भेद हैं-जलगत चूलिका, स्थलगत, मायागत, रूपगत, आकाशगत • 'पूर्व या पूर्वगत' 14 हैं-उत्पाद, अग्रायणीय, वीर्यानुप्रवाद, अस्तिनास्तिप्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यानप्रवाद, विद्यानुप्रवाद, कल्याण, प्राणावाय, क्रियाविशाल, लोकबिंदुसार। (अ) अंगबाह्य में 24 प्रकीर्णक हैं सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, विनय, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निशिथिक (अशीतिका)। दिगम्बर मान्यता के अनुसार 'दृष्टिवाद' के ही कुछ अंश शेष रह गये थे। पुष्पदन्त का 'षट्खंडागम' और भूतबलि का 'कषायप्राभृत' ये दोनों नथ दृष्टिवाद के 'पूर्वो' के आधार पर ही लिखे गये हैं। परन्तु श्वेतांबर-परम्परा ‘दृष्टिवाद' को पूर्णतया विलुप्त मानती है । श्वेताम्बर-मान्यता के अनुसार आगम -कोई 84 मानते हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज 45 आगम मानता है, स्थानकवासी और तेरापंथी 32 आगम मानते हैं । इन विभिन्न मतों के अनुसार आगमों की गणना निम्न है84 प्रागम-11 अंग, 12 उपांग, 5 छेदसूत्र (पंचकल्प को छोड़कर), 5 मूलसूत्र (उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, आवश्यक, नंदी, अनुयोगद्वार), 8 अन्य ग्रंथ (कल्पसूत्र, जीतकल्प, यतिजीतकल्प, श्राद्धजीतकल्प, पाक्षिक, क्षामणा, वंदित्तु, ऋषिभाणित), 30 प्रकीर्णक । 45 प्रागम-इनकी गणना ऊपर की गई है-11 अंग, 12 उपांग, 6 मूलसूत्र, 6 छेदसूत्र और 10 पइन्ना (प्रकीर्णक) । [ 9 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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