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________________ मन्वभूपति का काल 1299 ई. ( संवत् 1355 ) के लगभग माना जाता है । अत: अमृतनंदि का काल 13वीं शती प्रमाणित होता है । मंगराज या मंगरस प्रथम ( 1360 ई.) 'विजयनगर' के हिन्दू साम्राज्य के आरंभिककाल में 'राजा हरिहरराय' के समय में 'मंगराज प्रथम' नामक कानडी जैन कवि ने वि. सं. 1416 (1360 ई.) में 'खगेन्द्रमणिदर्पण' नामक वैद्यकग्रंथ की रचना की थी । यह कानडी (कर्नाटक भाषा) में बहुत विस्तृत ग्रन्थ है | यह विषचिकित्सा संबंधी उत्तम ग्रंथ 1 इसमें स्थावरविषों की क्रिया और उनकी चिकित्सा का वर्णन है । ग्रन्थ में लेखक ने अपने को 'पूज्यपाद' का शिष्य बताया है, और लिखा है - स्थावरविषों संबंधी यह सामग्री उसने 'पूज्यपादीय' ग्रन्थ से संगृहीत की है । मंगराज का ही नाम 'मंगरस' था । इसने अपने को होयसल राज्य के अन्तर्गत मुगुलिपुर का राजा और पूज्यपाद का शिष्य बताया है । इसकी पत्नी का नाम कामलता था और इसकी तीन संतानें थीं । यह कन्नड़ साहित्य के चम्पूयुग का महत्वपूर्ण कवि था । इसने विजयनगर के राजा हरिहर की प्रशंसा की है, अतः मंगराज उसका समकालीन था । इसकी 'सुललित - कवि - पिकवसंत', विभुवंशललाम' आदि अनेक उपाधियां थी । मंगराज ने लिखा है कि जनता के निवेदन पर उसने सर्वजनोपयोगी इस वैद्यकग्रंथ की रचना की है । इसमें औषधियों के साथ मंत्र-तंत्र भी दिये हैं । ग्रंथकार लिखता है - 'ओषधियों से आरोग्य, आरोग्य से देह, देह से ज्ञान, ज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है । अत: मैं औषधिशास्त्र का वर्णन करता हूं । इस ग्रन्थ में स्थावर और जंगम दोनो प्रकार के विषों की चिकित्सा बतायी गयी है । यह ग्रन्थ शास्त्रीय शैली में लिखा गया है अत: इसमें काव्यचमत्कार भी विद्यमान है । इसकी शैली ललित और सुन्दर है । इसका प्रकाशन मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास से हो चुका है । श्रीरदेव ( 1500 ई.) यह दिगम्बर जैन पण्डित था । इनका 'जगदेक महामंत्रत्रादि' विशेषण मिलता है । यह विजयनगर राज्य का निवासी था । - इसने रचना की है । इसमें 24 अधिकार हैं । यह कन्नडी भाषा में है । 1500 ई में 'वैद्यामृत' की बाचरस (1500 ई.) यह दिगम्बर जैन विद्वान् था । यह विजयनगर के हिन्दू राज्य का निवासी था । इसने 1500 ई. में 'अश्ववैद्य' की रचना की थी। इसमें अश्त्रों (घोडों) की चिकित्सा का वर्णन है । यह कानडी भाषा में है । 【 179 1
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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