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________________ 'इति श्री मलूकचंद विरचिते तिब्ब सहाबी भाषा कृत नाम वैद्यहुलासं समाप्तं' इसकी प्रतियों में पद्यसंख्या का अन्तर पाया जाता है। अभय जैनग्रन्थालय बीकानेर की प्रति में 404 और कृपाचंद्रसूरि ज्ञान भडार बीकानेर की प्रति में 518 पद्य हैं। इसके संबंध में अगर चन्द नाहटा ने लिखा है- 'कवि ने विशेष परिचय या रचनाकालादि नहीं दिये हैं। इसकी कई हस्तलिखित प्रतियां खरतरगच्छ के ज्ञानभंडारों में देखने में आई। अत: इस के खरतरगच्छीय होने की संभावना है।'1 ___ इस ग्रन्थ में अध्यायों या खंडों का कोई विभाग नहीं है। एक ही प्रवाह में पूरा ग्रन्थ लिखा गया है। ग्रन्थ में दी गई चिकित्सा सुगम और चित्ताकर्षक है 'सुमगचिकित्सा चित्तरची, गुरुचरणे चितु लाइ' (प्रारम्भ, पद्य 2) उदाहरण देखिए= 'कुलांजण ककडसिंही, लोंग कुढ सु कचूर । भाडंगी जल वपत सो महाकास हुइ दूर ।। (अंत, 404) -कुलिंजन, काकड़ासींगी, लैंग, कूठ, कचूर, भारंगी का काढ़ा बनाकर पीने से तीवकास (खांसी) दूर होती है । 'तिब्ब सहाबी' की मूल रचना लुकमान हकीम ने फारसी में की थी। यह 'तिब्ब' अर्थात् यूनानी चिकित्सा का उपयोगी, प्रामाणिक और महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है । इसका हिन्दी में पद्यमय अनुवाद करके मलूकचद ने नवीन दृष्टि का परिचय दिया है । इससे उनकी हिकमत विद्या में निपुणता और चिकित्साशास्त्र का गम्भीर ज्ञान होना सिद्ध होता है। समाज में धीरे-धीरे आयुर्वेद (वैद्यक) के साथ यूनानी चिकित्सा की उपयोगिता भी प्रकट हुई थी—यह इस अनुवाद से सूचित होता है। वैसे, यूनानी चिकित्सा का मूल भारतीय चिकित्सा-विज्ञान 'आयुर्वेद' ही है। अत: दोनों में सैद्धातिक-समानताएं, ओषधिद्रव्यों की एकरूपता आदि तथ्य देखने को मिलते हैं । सुमतिधीर (ई. 18वीं शती) यह खर तर गच्छीय थे। इनकाबाल वि. 19वीं शती है । इन के लिखे 'वैद्यजीवन-स्त बक' को हस्तप्रति चुरूभंडार में मौजूद है। यह सं. 184: (1784 ई.की लिखित है । अगरचन्द नाहटा, खरतरगच्छ के साहित्यसर्जक श्रावक गरण, जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति-ग्रन्थ, पृ. 172 । [163]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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