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________________ 1. सतश्लोकीभाषाटीका-(स्तबक) बोपदेव ने 13वीं शती के मध्य में पद्यों में चिकित्सा संबंधी 'शतश्लोकी' नामक योगसंग्रह की रचना की थी। इसमें चूर्ण, गुटिका, अवलेह, घृत, तैल और क्वाथ के रूप में भीषधयोगों का संग्रह है। यह ग्रन्थ चिकित्सा में बहुत प्रसिद्ध रहा । इस पर चैनसुखयति ने गद्य में राजस्थानी भाषाटीका लिखी है। इसकी रचना महेश की आज्ञा से रतनचन्द के लिए की गई थी। इसका रचनाकाल संवत् 1820 (1763 ई.) भाद्रपद कृष्णा 12 शनिवार दिया गया है। ग्रंथ के अन्त में लिखा है 'संवत् अठारे वीस' के, मास भाद्रपद जाण । कृष्णपक्ष तिथ द्वादशी, वार शनिश्चर मान ।।1।। टीका करी सुधरि के, चैनसुख कविराय । आज्ञा पाय 'महेश' की, 'रतनचन्द के भाय ।।2।' 2. वैद्यजीवन टवा-लोलिम्बराज की 'वैद्यजीवन' एक प्रसिद्ध कृति है। इसमें रोगानुसार सरल, अनुभूत, छोटे योग दिए हैं। यह सदैव चिकित्सकों का कण्ठदार रहा है । इस पर राजस्थानी गद्य में चैनसुख जती ने 'टवा नामक भाषाटीका लिखी है । रामविजय उपाध्याय (1774 ई.) यह खरतरगच्छीय 'दयासिंह' के शिष्य थे। वैद्यक पर इनके दो टीका-ग्रन्थ मिलते हैं1. शतश्लोकी-स्तबक (बोपदेवकृत 'शतश्लोकी' की भाषाटीका) 2. सन्निपातकालिका-स्तबक इन दोनों ग्रंथों का रचनाकाल सं. 1831 (1774 ई.) और रचनास्थान पाली (मारवाड़) है। संभवतः ये इसी क्षेत्र के निवासी थे । 'शतश्लोकी स्तबक' की हस्तप्रति रा. प्रा. वि. प्र. चित्तौड़ (39) में है। चनरूप (1778 ई.) संभवतः ये बीकानेर के निवासी थे। इनके एक वैद्यक ग्रंथ 'पथ्यापथ्य-स्तबक' की हस्तप्रति दानसागर भंडार बीकानेर में मौजूद है। इसका रचनाकाल सं. 1835 (1778 ई.) है। रघुपति (18वीं शती ई.) इनके गुरु खरतरगच्छीय 'विद्यानिधान' थे। इनका काल वि. 18वी शती था । (159)
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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