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________________ यह अब तक अप्राशित है । इस ग्रंथ से लेखक के वैद्यक और संस्कृत संबंधी विस्तृत ज्ञान का परिचय मिलता है । (2) बालतंत्र - भाषा-वचनिका - यह लेखक की हिन्दी ( राजस्थानी मिश्रित) गद्य में अहिछत्रानगर (वर्तमान नागौर) के निवासी रामचंद्र पंडित के 'कल्याणदास' ने संस्कृत में 'बालतंत्रम्' की रचना की थी । गच्छीय वाचक दीपचंद्र ने की - लिखी हुई रचना है । पुत्र और महिधर के पुत्र इसकी भाषाटीका खरतर "तिसकी भाषा खरतरगच्छ मांहि जनि 'वाचक' पदवी धारक 'दीपचन्द' इसे नामैं ।" इस टीका का नाम लेखक ने 'बालतंत्र भाषावचनिका' या 'बालतंत्रग्रंथवचनिकाबंध' लिखा है | इसमें बालकों के रोगों की चिकित्सा का वर्णन 15 पटलों में किया गया है । भाषाटीका के अन्त का उद्वरण यहां दिया जा रहा है 1 ग्रन्थारम्भ में ग्रन्थांत में 'ग्रन्थकर्ता कहै हैं मैंने जो यह बाल चिकित्सा ग्रन्थ कीया है । नाना प्रकार का ग्रन्थ कृ देख कर किया है सो ग्रंथ कोण कोण से आत्रेय 1, चरख 2 श्रुश्रुत 3, वाग्भट 4, हारीत 5, जोगसत 6, सनिपातकलिका 7, बंगसेन 8, भावप्रकाश 9, भेड 10, जोगरत्नावली 11, टोडरानंद 12, वैद्य विनोद 13, वैद्यकसारोद्धार 14, श्रुश्रुत 15 ( ? ), जोगचिंतामणि 16 इत्यादि ग्रन्थां की साखा लेकर में यह संस्कृत सलोक बंध कीया है । कल्याणदास पंडित कहता है, बालक की चिकित्सा का उपाय के देख कीजे । अहिच्छत्रानगर के विषें बहू पंडितां के विषें सिरोमन 'रामचंद' नामा पंडित रामचन्द्रजी की पूजा विषे सावधान | सो 'रामचंद्र' पंडित कैसो है । सातां कहतां सजनां नैं विषे पंडित मनुष्यां ने प्रीय छे। तिसके 'महिधर' नामा पुत्र भयौं । सो कशो हुवीं । पंडत मनुष्यों के तांइ खुस्यालि के करणहारे हुये । अत्यंत महापंडित होत भये । सर्व पंडित जनों के बंदनीक भये । फेर 'महिघर' पंडित केसे होत भये । श्री लक्षमीजी के नृसिंघजी के चर्ण कमल सेवन के विषें भृंग कहतां भंवरा समान होत भयो । माहा वेदांती भये । आतम ग्यानी भये । सर्व शास्त्र आगम अर्थ तिसके जांणणहार भये । महा परमागम शास्त्र के बकता भये । तिसके पुत्र 'कल्याणदास' नामा होत भये । माहा पंडित सर्व शास्त्र के बकता जाणणहार वैद्यक चिकित्सा विषे महा प्रविण सर्व शास्त्र वैद्यकका देख कर परोंपगार के निमित्त पंडिता का ग्यान के वासतें यह बाल चिकित्सा ग्रन्थ करण वास्ते कल्याणदास' पडित नामा होत भये । तीसें करी सलोक बंध । तिसकी भाषा 'खरतर गच्छ' मांहि जनि 'वाचक' पदवी धारक 'दीपचन्द' इसे नामैं, तिस कह्या यह संस्कृत ग्रन्थ कठिन है सौं अग्यानी मंद बुद्धि मनुष्य समझे नहीं - तिस - 'अथ बालतंत्रग्रंथभाषावच निकाबंध लिख्यते । ' ' इति श्री बालतंत्रग्रन्थबचनिकाबंध पूरी पूर्णमस्तु ।' (155)
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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