SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किया था। इनके शिष्य महिमहर्षे आदि हुए।। इनकी रचनाओं की भाषा राजस्थानी अर्थात् (मरुभाषा मिश्रित हिन्दी) है। प्रारंभिक रचनाओं में 'महिमासमुद्र' नाम और बाद की रचनाओं में जिनसमुद्रसूरि' नाम मिलता है। यह मुगल बादशाह शाहजहां के समकालीन थे। 'नारीगजल' में वह लिखते हैं 'पातिसाहि सहर 'मुलतान' दिसे जरकां का थांन । कायम राजा 'साहजहांन' उग्यां जाणे सम्मो भाण ।।41 'महिमासमुद्र मुनि' इल्लोल, कीधा कछु कवि कल्लोल । सुणकद सुख पावइ छयल, हीं ही हसइ मुरिख बयल ।।401 सं. 1730 में इन्होंने जैसलमेर गढ़ में 'तत्वप्रबोधन' टक' लिखा था। उसकी पुष्पिका में लिखा है-"इति श्री तत्त्वबोध नाम नाटकं संपूर्णम् श्री वेगडगछाधीश भट्टारक श्री जिनसमुद्रसूरिभिः कृतं सं. 1720 कातियां सित पंचम्यां गुरौ श्री जैसलमेरुगढ़ महादुर्गे । महानंदराज्ये श्रीः । श्रीः श्रीः ।" इनके द्वारा भर्तृहरि के 'वैराग्यशतक' पर विस्तार से 'अपभ्रंश' (राजस्थानीहिन्दी) में रचित 'सवार्थसिद्धि मणिमाला' नामक टीका का चतुर्थप्रकाश मिलता है । "अब श्री वैराग्यशतक के वि तृतीयप्रकाश' वखान्यौ तो अब अनंतरि 'चोथाप्रकाश गुवालेरी' भाषा करि वखानता हूं। प्रथम शास्त्रीक षद्भाषा छोडि करि या 'अपभ्रंश' भाखा वीचि असा ग्रन्थ की टीका करणी परी।" इसके अन्त में इन्होंने बताया है कि इसकी रचना वेगडगच्छ के शिष्य-प्रशिष्यों की अर्थसिद्धि के लिए की गई है "महावैराग्यकारणं सुभाष सुगमं चक्रे श्रीसमुद्राद्यंतसूरिणा ।।6।। xxप्रोद्यत्श्री वगेडाख्यागगन दिनमणिनां गणीनां सुशिष्यः शिष्यानामर्थसिध्यै । जिनदधिर विभि: शोधनीयानि विद्भिः ।।71 इसके आगे इनकी गुरु-शिष्य-परम्परा का उल्लेख मिलता है "इति श्री श्वेतांबरसूरि'शिरोमणिनां परमाव्यर्हच्छासन गगनां दिनमणिनां 'भट्टारक श्री जिनेश्वरसूरि' सूरीणां पट्टे युगप्रधान पूज्य परम पूज्य परमदेव 'श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां' शिष्येण 'भट्टारक श्री जिनसमुद्रसूरिणा' विरचितायां 'श्रीभर्तृहरि' नाम 'वैराग्यशतक' टीकायां 'सर्वार्थसिद्धिमणिमालायां' 'चतुर्थप्रकाशोयं' समाप्तः।" ____ इसका रचनाकाल सं. 1740 (1683 ई.) कार्तिक शुक्ल 15 पूर्णिमा, 'साहस्यबादे कर्णपुरे' दिया है। ग्रथांत में गच्छ, गच्छनायक आदि के संबंध में संस्कृत गद्य में विवरण दिया है । । अगरचन्द नाहटा, राजस्थानी भाषा के दो महाकाव्य' शीर्षक लेख, राजस्थानी, 2, कलकत्ता, पृ, 45-47 । [ 131 1
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy