SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिलता है-काशी-कोसल, अंग-मगध, चेतिय (चेदि)-वंश (मत्स्य), कुरु-पांचाल, मच्छ (मत्स्य) सूरसेन, अस्सक (अश्मक)-अवन्ति, गांधार-कम्बोज । प्रसिद्ध जैन ग्रंथ 'भगवतीसूत्र' में 16 प्रांतों या जनपदों के नाम कुछ भिन्न रूप में हैं - अंग, बंग, मगह (मगध), मलय, मालव, अच्छ (अश्मक), वच्छ (वत्स), कच्छ, पाढ़ (पाण्ड्य), लाढ़ (राधा), बज्जी, मल्ल, काशी, कोसल, आवाह और सम्भूत्तर । सभी तीर्थंकर व्रात्य क्षत्रियवंशों में उत्पन्न हुए थे। अंतिम चार तीर्थंकरों के विषय में विशेष ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आये हैं-नमिनाथ इक्कीसवें तीर्थकर थे। ये मिथिला के राजा और जनक के पूर्वज थे। बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ या अरिष्टनेमि थे। ये शूरसेन जनपद की राजधानी सोरियपुर =शोरिपुर (सूर्यपुर, आगरा जिले में बटेश्वर के पास) में यदु वंश में उत्पन्न हुए थे। ये कृष्ण के चचेरे भाई थे। इन्होंने सौराष्ट्र के गिरनार या ऊर्जयन्त पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया था। तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ काशी के उरगवंशी राजकुमार थे। इनका जन्म ई. पू. 877 में (वर्धमान महावीर से लगभग 250 वर्ष पूर्व) हुआ था। इन्होंने सौ वर्ष की आयु में ई. पू. 777 में बिहार के सम्मेदशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर का जन्म वज्जी-विदेह की राजधानी (बसाढ़-मुजफ्फरपुर, बिहार) के उपनगर क्षत्रियकुण्ड ग्राम (कुण्डपुर) में लिच्छवी वंशीय राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिशला से हुआ था। ज्ञातृकुल में उत्पन्न होने के कारण यह ज्ञातृपुत्र तथा वीर होने के कारण महावीर कहलाये। तीस वर्ष पर्यन्त श्रमण धर्म का उपदेश देने के बाद 72 वर्ष की आयु में (527 ई. पू. के लगभग) कार्तिकी अमावस्या के दिन मज्झिमपावा (पावापुरी-बिहार) में निर्वाण प्राप्त किया। उन्होंने अपने उपदेश जनसाघारण की भाषा अर्धमागधी में दिये । वर्धमान महावीर और बुद्ध का काल लगभग समान है। उनका जन्म और विहार प्रायः एक ही प्रदेश में हुआ तथा दोनों ने वर्ण-व्यवस्था व हिंसामय-यज्ञयाग आदि का विरोध प्रकट किया। ___ महावीर के उपदेश से पावानगरी में जिन विद्वान् ब्राह्मणों ने उनका शिष्यत्व और श्रमणधर्म ग्रहण किया, वे "गणधर" (प्रमुख शिष्य) कहलाये। वे ही द्वादशांग, चतुर्दशपूर्व एवं समग्र गणिपिटक के ज्ञाता बने । महावीर की उपस्थिति में गौतम इन्द्रभूति और सुधर्मा को छोड़कर सब गणधरों ने राजगृह में निर्वाण प्राप्त किया। गौतम इन्द्रभूति और आर्य सुधर्मा ने महावीर निर्वाण के 12 वर्ष बाद तक जैन संघ का नेतृत्व किया। सुधर्मा के शिष्य जम्बूस्वामी हुए। इनके बाद क्रमशः प्रभाव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूत और स्थूलभद्र हुए। इस प्रकार श्रमण-परम्परा सुधर्मा से निरन्तर अब तक चलती रही है । [ 4 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy