SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वेतांबा मत में तपागच्छ की उत्पत्ति मेवाड में, यहां के तत्कालीन शासक जैकसिंह द्वारा जमचंद्रसूरि को 1.28 ई. में 'तपा' विरुद प्रदान करने से हुई थी। इस गन्छ का प्रभाव मेवाड़, मारवाड़ और गुजरात में व्याप्त है। इस गच्छ. का सम्बन्ध नामोर (मारवाड़) से है। गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार नागौर का पुराना नाम 'नागपुर' और 'अहिच्छत्रपुर' था (द्र. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग 2, पृ. 329)। हर्षकीतिसूरि के अधिकांश ग्रन्थ राजस्थान एवं गुजरात में ही मिलते हैं; अत: इनका मूलक्षेत्र राजस्थान (मारवाड़) या गुजरात में कहीं था, परन्तु विहार दोनों ही प्रदेशों में हुवा। इनकी संस्कृत के अतिरिक्त राजस्थानी व गुजराती में भी रचनाएं मिलती हैं। हर्षकीर्तिसरि के शिष्य अमरकीति और उनके शिष्य यश:कीति हए । संस्कृत में इनकी अनेक रचनाएं मिलती हैं जिससे इनकी गभीर विद्वता का परिचय मिलता है। 1. धातुपाठ (सारस्वत व्याकरण संबंधी) 2. धातुतरंगिणी ('धातुपाठ' की स्वोपज्ञवृत्ति-टीका) 3. सारस्वत दीपिका (सारस्वतव्याकरण पर टीका) 4. सेट् अनिट्कारिका (वि. सं. 1662 में रचना) 5. सेट् अनिट्कारिका-स्वोपज्ञवृत्ति (वि. सं. 1669 में रचना) 6. शारदीयनाममाला (शारदीयाभिधान माला) (कोशग्रन्थ ) 7. श्रुतबोधटीका 8. ज्योतिस्सारसंग्रह (वि. सं. 1660 में रचना) ५. जन्मपत्रीपद्धति (वि. सं. 1660 में रचना) 10. विवाहपटल - बालावबोध 11. लक्ष्य-लक्षण विचार 12. योगचिन्तामणि (वैद्यकसारसंगह) 13. वृहत शांतिस्तोत्र-टीका (सं. 1655) 14. सिन्दूरप्रकर-टीका, 15. कल्याणमन्दिर स्तोत्र व्याख्यालेश' टीका (सं. 1668 में रचना) 16. नबस्मरण-टीका 1 जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग 5, पृ. 152 2 इस टीका के प्रारम्भ में टोकाकार ने इस प्रकार अपना परिचय दिया है 'श्रीमन्नागपुरीयपूर्वकतपागच्छाम्बुजाहस्कराः सूरीन्द्राः चन्द्रकीतिगुरुवो विश्वत्रयोविश्रुताः । तत्पादाम्बुरुहप्रसादपदतः श्रीहर्षकीाह्वयोपाध्यायः श्रुतबोधवृत्तिमकरोद् बालावबोधाय वै ॥' । जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, खंड 2, उपखंड 1, पृ. 297 पर इसका रचनाकाल सं. 1633 बताया गया है। [ 114 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy