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________________ तथा च-'श्रीमानंचलगच्छनायकगुरुर्नाम्ना महेन्द्रप्रभः । सूरीन्द्रः क्षितिमण्डले विजयते यो गेय कितिः सदा ।। इसके बाद ग्रन्थ खंडित है। इसके रचनाकाल और रचनास्थान आदि के बारे में कुछ पता नहीं। चम्पक रसविद्यानिपुण, उज्जल कीर्तिवान, यशस्वी और नित्यपरोपकार में तल्लीन रहने वाला-ऐसा उसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में 'अहंतों' (जिनों = तीर्थङ्करों) को नमस्कार किया गया है। यह स्वतंत्र रचना न होकर प्रथकार के अनुसार 'कंकालाध्याय' का 'वात्तिक' है। लिखा है "सिद्धिः श्रीनामतो येषां भवेत्सर्वेप्सितं श्रियाम् । नत्वा तानहतः कुर्वे 'कंकालाध्यायवात्तिकम् ।।।।' पुनः कहा है-'अथाऽध्यायं समायातं 'श्रीकंकाल ययोगिनः । वदामि व्यजितो यत्र युक्तिभिः शृंखलारसः ।।12।' 'रसाध्याय' में बताया है कि 'कंकाल' (कंकालय) योगी रसकर्म, गुटिका और अंजनों का अच्छा ज्ञाता था। उसने अपने शिष्य को रसविद्या का मर्म समझाया था। कंकालय के शिष्य ने अपने और दूसरों के उपकार के लिए 21 अधिकारों (प्रकरणों) वाले 'रसाध्याय' ग्रंथ को बनाया। 'रसगुट्यंजनाभिज्ञः 'श्रीकंकालययोग्यभूत् । तेन स्वशिष्य शिक्षार्थ 'रसतवं' निवेदितम् ।।8।। 'श्रीकंकालय शिष्योऽपि' स्वान्योपकृतये कृती। एकविंशत्यधीकारं 'रसाध्यायं निबद्धवान् ।।9।। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि चम्पक' ने रसविद्या पर कंकालययोगी के शिष्य द्वारा रचित 'रसाध्याय' पर अपना 'वार्तिक' लिखा था। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि मैंने कुछ गुरुओं से सुनकर, कुछ रसमर्मज्ञों के सम्पर्क से और कुछ अपने अनुभव से इस ग्रंथ की विवेचना की है -- गुरुभ्यः किंचिदाकर्ण्य तज्ज्ञः संसृज्य किंचन । किंचिदप्यनुभूयासौ ग्रंथो विवियते मया ॥2॥' रस-क्रियाएं बहुत जटिल होती हैं। साक्षात् गुरु के कहने से ही धातुवाद सिद्ध नहीं होता जब तक दो तीन बार गुरु के पास उसकी क्रिया-विधि देखी नहीं जाय । इसलिए सुनकर, देखकर, धन खर्च कर, गुरु को किसी भी प्रकार प्रसन्नकर योगों की सिद्धि करनी चाहिए। बिना गुरु के धातुवाद में परिश्रम करना व्यर्थ है 'प्रोक्तोऽपि गुरुणा साक्षाद् धातुवादो न सिद्ध यति । यावन्न दृश्यते द्विस्त्रिगुरुपा क्रियाविधिः ।।3।। [ 100 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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