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________________ टीका लिखी थी । निश्चित ही यह एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ रहा होगा। यदि इसकी कहीं कोई प्रति मिलजाय तो अष्टांगहृदय के व्याख्यासाहित्य में उससे महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। इस टीका का उल्लेख हरिशास्त्री पराड़कर और पी. के. गोड़े ने भी किया है । यह टीका-ग्रन्थ लगभग वि.स. 1296 (ई. 1240) में लिखा गया था। हंसदेव (13वीं शती) यह दक्षिण के जैन कवि (? यति ) थे। इनका काल 13वीं शती माना जाता है। इन्होंने पशु-पक्षियों के सम्बन्ध में विस्तार से 'मृग-पक्षिशास्त्र' की रचना की है। पं.वी. विजयराघवाचार्य. पुरातत्वज्ञ, तिरुपति (मद्रास) को इसकी हस्तलिखित प्रति प्राप्त हुई थी। इसे उन्होंने त्रावनकोर के महाराजा को भेंट किया। मूल ग्रन्थ अप्रकाशित है । सुन्दराचार्य ने 1925 में इसका अग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया है । - इसमें पशु-पक्षियों के 36 वर्ग वणित हैं। प्रत्येक के क्रमशः रूप-रंग, भेद, स्वभाव, बाल्यावस्था संभोगकाल, गर्भधारण-काल, खान-पान, आयु और अन्य विशेषताएं विस्तार से कही गयी हैं । यह बताया गया है कि पशु-पक्षियों में सत्वगुण नहीं होता, केवल रजोगुण और तमोगुण ही होते हैं । इसी आधार पर उनके तीन भेद बताये गये हैं - उत्तम, मध्यम और अधम । उत्तम राजस गुण वाले पशु-पक्षी-सिंह, हाथी, घोड़ा गाय, बैल. हंस, सारस, कोयल, कबूतर आदि; मध्यम राजसगुणवाले पशु-पक्षी -चीता, बकरा, मृग, बाज आदि; अधमराजस गुणवाले पशुपक्षी रीछ, गेंडा, भैस आदि हैं । इसी प्रकार उत्तम तामसगुणवाले- पशु-पक्षी-ऊंट, भेड़, कुत्ता, मुरगा आदि; मध्यम तामस गुणवाले सिद्ध, तीतर आदि तथा अधम तामस गुणवाले गधा, सूअर, बन्दर, गीदड़, बिल्ली, चूहा, कौआ आदि होते हैं । पशु पक्षियों का यह वर्गीकरण बहुत रोचक और मौलिक है। पशु-पक्षियों का आयुमान भी बताया गया है। हाथी की उम्र सबसे अधिक 100 वर्ष तथा खरगोश की सबसे कम 11 वर्ष होती है । गेंडा 22, ऊंट 30, घोडा 25, सिंह-भैंस-गाय-बैल आदि 20, चीता 6, गधा 12, बन्दर- कुत्ता-सूअर 10, बकरा9, हंस 7, मोर 6, कबूतर 3, चूहा और खरगोश 11 वर्ष आयु वाले होते हैं । इसमें लगभग 225 पशु-पक्षियों का वर्णन है । ग्रन्थ के दो भाग हैं। पहले भाग में पशुओं का और दूसरे भाग में पक्षियों का वर्णन है । प्रत्येक किस्म के पशु या पक्षी के भेद और स्वरूपादिगत विशेषता भी बतायी है। जैसे सिंह के छः प्रकार बताये हैं - 1 हरिशास्त्री पराडकर, अष्टांगहृदय, उपोद्धात (निर्णयसागर, बंबई), पृ. 26 ३ पी. के. गोडे, अष्टांगहृदय, (बंबई 1939 ), इंट्रोडक्शन, पृ. 6 3 जनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 5, पु. 228 [ 98 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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