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________________ तीसरा भाग इन्द्रादि देवोंने भाकर उनका दीक्षा कल्याणक उत्सव मनाया। (९) मगहन वदी १० के दिन पंड नामके वनमें दीक्षा पारण की, उसी समय मापको मनःर्ययज्ञान की प्राप्ति हुई। (१०) तीन दिनका उपवास कर कुल ग्राम नगरके राजा कूलके यहां आहार लिया । देवोंने राजाके घर पंचाश्चर्य किए। (११) एकदिन विहार करते हुये भगवान महावीरने पतिमुक्तक नामक श्मशानमें प्रतिमायोग धारण किया। उन्हें देखकर महादेव नामक रुद्रने उनके धैर्यकी परीक्षा लेने के लिये महा उपसर्ग किया। उसने अपनो विद्याके बलसे अंधेकर दिया। फिर भनेक बेताल भाकर तीक्ष्ण दांतोंको निकाल मुह फाड़ अत्यंत भयानक रूपसे नाचने लगे। कठोर शब्द, अट्टहास्य तथा विकराल दृष्टिसे देखकर डगने लगे। इसके बाद सर्प. हाथी, सिंह, अग्नि और. वायु मादिके साथ भीलोंकी सेना बनकर आई और घोर शब्द करने लगी। इस तरह अपनी विद्याके प्रमावसे उस महादेवने अनेक भयानक उपसर्ग किए, परन्तु वह भगवानके चित्तको समाधिसे नहीं डिगा सका । उस समय उसने भगवान का नाम अतिवीर रक्खा और भनेक तरह की स्तुति तथा नृत्य किया और अभिमान छोडकर अपने स्थानको चकागया। (१२) एक दिन कौशांबी नगरीमें भगवान मह वीर माहाके लिए भाए। उन्हें देखकर चन्दना नामक महासती राजकन्या जो वृषभदत्त सेठके यहाँ कैदमें थी, मिट्टी के सकोरेमें कोदों का भात रखकर आहारके लिए खड़ी हुई। भगवानको देखते ही उसकी
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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