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________________ तीसरा भाग (३) महाराज अंधकवृष्टि समुद्रविजयको राज्य देकर मुनि होगए। समुद्रविजयने पाठों भाइयोंमें अपना राज्य बांट दिया । (४) कुमार वसुदेव बहुत सुन्दर थे । वे विहारके लिए प्रतिदिन नगरके नहर जाया करते थे । वे ठीक देवकुमार जैसे मालूम पड़ते थे । नगरकी नारियां उन्हें देखकर मोहित होजाती थीं और अपना कामकाज भूलकर एकटक इन्हें ही देखती रह जाती थीं। अपनी सास मादिकी भी कुछ बात नहीं सुनती थीं इसलिए कुमार वासुदेवके बाहर निकलने से नगरके लोग बहुत दुःखी होते थे। एक दिन सबने मिलकर महाराजा समुद्र विजयसे अपना दुःख प्रकट किया। महारानने वसुदेवके लिए राजमंदिरके चारों ओर मनोहर वन, राजभवन और कृत्रिम पर्वत बनवाकर उनसे उसमें घूमने के लिए कहा । अब बाहर न जाकर वे वहीं घूमने लगे। (५) एक दिन एक सेवकके द्वारा उन्हें मालूम हुआ कि महाराज समुद्रविजयने उन्हें बाहर जाने से रोक दिया है । इससे उन्हें दुःख हुमा । दूसरे दिन किसीसे विना कहे सुने वे विद्या सिद्धिके बहाने अकेले ही नगरसे बाहर निकल गए । समुद्र विजयने उनकी बहुत खोज कराई परन्तु उनका कुछ पता न कगा। (६) नगरसे निकलकर वे विजयपुर ग्राममें पहुंचे और विश्रमके लिए भशोक वृक्षके नीचे घनी छायामें बैठ गए । उस वृक्षकी छाया कभी स्थिर नहीं होती थी। उनके बैठनेसे वृक्षकी छाया स्थिर होगई। मालीने उस वृक्षको छायाको स्थिर देखकर मगक देशके राजाको उसकी खबर दी । राजासे निमित्तज्ञानीने कहा था कि.
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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