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________________ c. तीसरा भाग लगे। किंतु उपरांत योग साधनसे वह ठीक होगई थी। लगन इसीको कहते हैं। (११) उस समय दक्षिण भारतमें विद्या व्यसन जोरोंपर था। मैलापुर. तामिल विद्वानों का घर था और वहां एक "विद्वत् समाज" स्थापित था। जैनियोंकी भी वहांपर अच्छी चलती थी। श्री कुंदकुंद ऐलाचार्थने तामिलमें 'कुल' नामका एक महाकाव्य रचा.. और थिरुवल्लुवर नामक अपने शिष्य के हाथ उसे विद्वत् समाजमें पेश करने के लिये भेज दिया। विद्वन् मण्डलने उसे खूब पसंद किया. और वह तामिल साहित्य का एक रल बन गया। सचमुच नीतिका वह अपूर्व ग्रन्थ है और तामिक देशमें वह 'वेद' माना जाता है। . उसकी रचना ऐसी उदार दृष्टि से की गई है कि प्रत्येक धर्मका अनुयायी. उसे अपना मान्य ग्रन्थ स्वीकार करने के लिये उतावला, होजाता है। श्री कुंदकुंदाचार्य के समान धर्माचार्यकी कृति सांप्रदा., यिकतासे अछूती रहना ही चाहिये थी ! ___(१२ ) 'कुल' के अतिरिक्त तामील भाषामें और किन ग्रन्थों की रचना श्री कुन्दकुन्दस्वामीने की, यह ज्ञात नहीं है । किंतु तामिळके अतिरिक्त वह प्राकृत भाषाके भी प्रौढ़ विद्वान थे और.. इस भाषामें उन्होंसे जैन सिद्धांतके भनेक ग्रन्थ, लिखे थे; जिनमें 'प्राभृतत्रय', षट्पाहुड़, नियमसार भादि उल्लेखनीय हैं । 'प्राभृतत्रय' को उन्होंने पल्लववंशके राजा शिवकुमार महाराजके लिये लिखा था। कुन्दकुन्दाचार्यको यह राजा अपना गुरु मानता था और उनके धर्मप्रचारमें यह विशेष सहायक था। दिगम्बर संप्रदायमें भाज दा
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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