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________________ प्राचीन जैन इतिहास । ६३ भी इनको बहुत सेवा की । विद्याओंकी सिद्धिसे रावणकी कीर्ति बहुत कुछ फैल गई थी। (११) असुरसङ्गीत नगरके राना मयने अपनी पुत्रीका विवाह रावणके साथ करने का विचार कर पुत्रीको लेकर रावणके पास आया । रावण उस समय चन्द्रहास्य खगकी सिद्धि कर सुमेरु पर्वत पर चैत्यालयोंकी वन्दना करने गया था। अतएव रावणकी भगिनीने राजा मय, उनकी पुत्री, और उनके मंत्रियोंका आतिथ्य-सत्कार किया। (१२) फिर रावण आकर सबोंसे मिला । चैत्यालयमें जाकर पूनन की। पूननके अनन्तर जब रावण, मय आदि आकर बैठे तब रावणकी दृष्टि मयकी पुत्री मन्दोदरी पर पड़ी । मन्दोदरी बड़ी रूपवती थी । मन्दोदरीको देखकर रावण मोहित हुआ। रावणको मोहित जान मयने मंदोदरीको रावणके सन्मुख उपस्थित कर प्रार्थना की कि आप इसके पति होना स्वीकार करें । रावणने स्वीकार किया और उसी दिन रावणसे मन्दोदरीका विवाह हुआ । (१३) मन्दोदरी रावण की अन्य राणियोंकी पट्टरानी हुई। एक दिन राबण मेघवर पर्वत पर क्रीड़ा करने गया था वहाँ छः हजार रानकन्याएँ भी क्रीड़ा कर रही थीं। रावण भी उनके साथ क्रीड़ा करने लगा। उन कन्याओंमें और रावणमें परस्पर अनुराग उत्पन्न हो गया । अतएव उन कन्याओंके साथ रावणने गन्धर्व विवाह किया । यह देख उन कन्याओं के साथ जो सेवक आये थे उन्होंने उन कन्याओंके माता पितासे जब यह निवेदन किया तब वे बड़े क्रोधित हुए और अपने सामन्तोंको रावणको पकड़नेके
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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