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________________ प्राचीन जैन इतिहास | ५३ सगर चक्रवर्तीको कोई अश्व उसी वनमें उड़ा लाया वहां सुलोच. नके पुत्र सहस्र - नयनने सगर चक्रवर्ती के साथ अपनी बहिन उत्पलमतीका विवाह किया । चक्रवर्तीने सहस्र - नयनको विद्याधरोंकी दोनों श्रेणियोंका राजा बनाया । तब उसने पूर्णधनसे अपना बदला चुकाने के लिये युद्ध किया । युद्धमें पूर्णधन और उसके कई पुत्र मारे गये । केवल एक पुत्र मेघवाहन नामक बचा । वह भाग कर भगवान् अजितनाथके शरण में आया । इन्द्रने उसे भयभीत देख उसके भयका कारण पूछा तब उसने अपना सब वृत्तांत कहा । सहस्रनयन भी भगवान् के समवशरण में आया । वहां दोनोंने अपने पिता आदिके पूर्व भव वृत्तांतको जान परस्परका वैर छोड़ मैत्री - धारण की। तब मेघवाहन पर प्रसन्न हो कर राक्षकोंके इन्द्र भीम सुभीमने लङ्का ( जो कि लवण समुद्रके पार है) और पाताल लङ्काका राज्य दिया । लङ्का ३० योजन थी । पाताल लङ्कामें एक अलङ्कारोदय नगर या जो कि एक सौ साढ़े इकतीस योजन १३ ( डे) कला चौड़ा था । इसके साथ २ मेघवाहनको उन्होंने राक्षस नामक विद्या भी दी। अंतमें मेघवाहनने भगवान् अजितनाथ समवशरण में दीक्षा धारण की। मेघवाहनकी स्त्रीका नाम सुप्रभा था। और पुत्रका नाम महारिक्ष। मेघवाहनके दीक्षा लेनेके बाद महारिक्ष राज्याधिकारी हुआ । महारिक्षने भी श्रुतसागर समीप दीक्षा धारण की । इनके बड़े पुत्र अमराक्ष राजा हुए और लघु पुत्र भानुरक्ष युवराज । इन्होंने भी अपने पुत्रको राज्य देकर दीक्षा धारण की । (४) महारिक्षकी कई पीढ़ियोंके बाद एक रक्ष नामक राजा हुए । उनकी स्त्रीका नाम मनोवेगा था । इस दम्पतिसे राक्षस
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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