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________________ ४८ दुसरा भाग। कि इसका कहना झूठ है हम दोनों एक गुरुके पाप्त वेद पढ़े थे और उन्होंने हिंसाको धर्म बतलाया है । हमारे साथमें राजा वसु भी पढ़े थे । उनसे पूछा जाय । अंतमें राजा वसुसे पूछना निश्चय हुआ और विश्वभूत पर्वत आदि वसुके पास गये । वसुको पर्वतकी माताने अपने पुत्रकी विनय करनेके लिये कह रखा था। वसुसे पूछते ही उसने तीनों वार पर्वतका कहना सत्य बतलाया। उसके यह कहनेसे जगतमें अशांति उत्पन्न हो गई, आकाश गड़गड़ाने लगा, रक्तकी वर्षा होने लगी और पृथ्वी फटने का भयानक शब्द हुमा । और वसु जिस आसन पर वह बैठा था उस आसन सहित झूठके कारण पृथ्वीमें घुस गया । और मर कर नरक गया । पर महाकालने उसे भी विमानमें बैठा हुआ आकाशमें लोगोंको दिखलाया जिससे कि वेद और यज्ञके ऊपर अश्रद्धा न हो । वसुको देख. कर विश्वभूतने प्रयागमें जाकर यज्ञ करना प्रारम्भ किया। इस पर महापुर आदि राजाओंने इन लोगों की निंदा की और नारदको धर्मका रक्षक जान कर गिरितट नामक नगर प्रदान किया । विश्वासुके यज्ञमें नारदकी आज्ञासे दिनकर देव नामक विद्याधरने अपनी विद्यासे नागकुमार जातिके देवोंको बुलाया और तब नागकुमार जातिके देवोंने उस यज्ञमें विघ्न डाला। उस विघ्नसे बचनेके लिये, यज्ञकुंडके आसपास महा कालने जिनेन्द्रकी मूर्ति रखनेकी सम्मति पर्वतको दी । क्योंकि जहां जिनेन्द्रकी मूर्ति होती
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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