SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन इतिहास । ४५ नदीका जल पीकर मोरडियोंका समूह लौट कर आ रहा था । नारदने दूर ही से देख कर कहा कि पर्वत ! इन मोरोंमें एक मोर और सात मोरडी हैं। आगे जाकर जब वे मोर आदि देखे तो मालूम हुआ कि नारदका कहना सत्य है । फिर आगे चल कर नारदने कहा कि पर्वत इस मार्गसे एक अंधी हथनी जिस पर गर्भवती स्त्री सवारी थी गई है। स्त्री सफेद साड़ी पहने थी। और उस गर्भवतीने संतानका प्रसव भी कर दिया है । नारदका यह भी कहना सत्य निकला । तब पर्वतने आकर मातासे कहा कि मुझे पिताने पूरी विद्या नहीं पढ़ाई, नारदको पढ़ाई है। पर्वतके पितासे उसकी माताने यह बात कही। उन्होंने पर्वतकी बुद्धि की मंदता बतला कर कहा कि मुझे सब शिष्य समान हैं, इसकी बुद्धि ही विपरीत है । तब परी. क्षाके लिये आटेके दो बकरे बनाकर क्षीरकदंवने पर्वत और नारद दोनोंको दिये और आज्ञा दी कि जहां कोई न देख सके ऐसे स्थानपर इनके कानोंको छेदकर मेरे पास लाओ । पर्वत वनमें जाकर निर्जन स्थान देख कान छेद लाया । पर नारदने कहा कि पहिले तो ऐसा स्थान ही नहीं मिलता जहाँ कि कोई न देख सके । दूसरे यद्यपि यह जड़ वस्तु है तो भी इसमें पशुका भाव रख उसकी स्थापना की गई है अतएव इसके कर्ण छेदनेमें अवश्य कुछ न कुछ मेरे भाव हिंसारूप होंगे अतः मैं यह कृत्य नहीं कर सकता । तब क्षीरकदवने अपने पुत्रको अयोग्य
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy