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________________ ३२ पाठ १५. भगवान् मल्लिनाथ । ( उगनीसवें तीर्थंकर) दूसरा भाग । (१) भगवान् मल्लिनाथ अठारहवें तीर्थकर अरहनाथके मोक्ष जानेके दस अर्ब वर्ष बाद मोक्ष गये । (२) भगवान् मल्लिनाथ बंग प्रान्तके मिथिलापुरके इक्ष्वाकुवंशी काश्यप गोत्री महाराज कुंभकी महारानी पद्मावती के गर्भ से मिती चैत्र सुदी प्रतिपदाको गर्भमें आये । आपके गर्भ में आनेके छह मास पहिलेसे और जन्म होने तक इन्द्रोंने पिता के घर पर रत्न वर्षा की थीं। देवियों माताकी सेवामें रही थी । माताने सोलह स्वप्न देखे थे । इन्द्रादि देवोंने गर्भ कल्याणकका उत्सव मनाया था। (३) मार्गशीर्ष सुदी ग्यारस के दिन आपका जन्म हुआ । जन्मसे ही आप तीन ज्ञान धारी थे । इन्द्रादि देवोंने जन्म कल्याथकका उत्सव मनाया । (४) आपके लिये स्वर्ग से वस्त्राभूषण आते और वहींके देवगण साथमें क्रीड़ा करनेको आते थे । (२) आपकी आयु पचपन हजार वर्षकी थी और शरीर पचीस धनुष ऊँचा था । आपके शरीरका वर्ण सुवर्णके समान था । (६) आप सो वर्ष तक कुमार अवस्था में रहे । जब आपके विवाह की तैयारी की गई और नगर सजाया गया तब आपने इसे आडंबर और साधारण पुरुषोंका कार्य समझ बैराग्यका चितवन किया ।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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