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________________ १६ . दूसरा भाग। (७) मगवान्का कुमार काल बत्तीस हजार वर्षका था। उसके पूर्ण होनेपर आप पिताके राज्यासन पर बैठे । (८) भगवान् शांतिनाथ पांचवें चक्रवर्ति हुए थे। इसलिये भरत आदि चक्रवर्तियोंको जो चौदह रत्न, नवनिधि, छह खंड पृथ्वीकी मालिकी आदि संपत्ति प्राप्त हुई थी वह इनको भी हुई । आपकी भी छनवे हजार रानिया थीं। (९) पचवीस हजार वर्ष तक चक्रवर्ति महाराजाधिराजकी अवस्थामें रहकर भगवान् एक दिन काँच ( दर्पण ) में अपने दो मुँह देखकर चकित हुए और अपने पूर्व भवके वृत्तांत जान संसारको अनित्य समझ वैराग्यका चितवन करने लगे। तब लौकांतिक देवोंने आपके विचारोंकी स्तुति व प्रशंसा की । फिर अपने पुत्र नारायणको राज्य देकर सहस्त्राम्न वनमें आपने दिक्षा धारण की । इस समय इन्द्रादि देवोंने गर्भ कल्याणकका उत्सव मनाया था । भगवान्का दिक्षा दिन ज्येष्ठ वदी चौथ था। तप धारण करते समय भगवान्को चोथे मनःपर्यय ज्ञानकी प्राप्ति हुई । भगवान्के साथ चक्रायुध आदि एक हजार राजाओंने भी दिक्षा ली थी। (१०) पहिले ही पहिल दो दिनका उपवास धारण कर उसके पूर्ण होनेपर मंदिरपुरमें राजा सुमित्रके यहाँ आहार लिया। इसपर देवोंने राजाके आँगनमें पंचाश्चर्य किये । (११) आठ वर्ष तक तप कर पौष सुदी दशमीको भगवानके केवलज्ञानी हुए । तब इन्द्रादि देवोंने समवशरण सभा बनाई व ज्ञान कल्याणक उत्सव किया ।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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