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________________ दूसरा भाग। देव ( वैद्य रूपमें)-स्वामिन् ! मैं बड़ा प्रसिद्ध वैद्य हूं। आपके शरीरमें रोगोंका समूह देख कर मुझे दुःख होता है, आज्ञा दीजिये कि मैं इन्हें दूर करूं । सनत्कुमार (मुनीश-पहिलेके चक्रवर्ती)-वैद्यवर, इन शारीरिक रोगोंसे मेरी कुछ भी हानि नहीं होती । किंतु जन्म मृत्युके जो रोग हैं वे बहुत दुःख दे रहे हैं, यदि आपमें शक्ति हो तो उन रोगोंको दूर करिये। ____ यह उत्तर सुनकर देव चुप हो गया और फिर प्रगट हो कर स्तुति की । * (४) अंतमें इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ । और मोक्ष पधारे। नोट-पद्मपुराणमें सनत्कुमार चक्रवर्तिको नागपुरके राना 'लिखे हैं और उनका नाम विनय लिखा है । और सनत्कुमारके वैराग्य धारण करनेके संबंधमें लिखा है कि जब स्वर्गसे देव रूप देखने आये तब सनत्कुमार व्यायाम करके उटे ही थे उनके शरीर पर अखाड़ेकी रन लगी हुई थी जिस पर भी इनका रूप देवोंको बहुत सुंदर लगा । फिर जब ये स्नानादि कर राज सभामें बैठे तब देव प्रगट रूपसे देखने आये उस समय देवोंने कहा कि पहिले देखे हुए रूपसे इसमें न्यूनता है यह सुन कर सनत्कुमारको वैराग्य हुआ। ___ * यह कथा व रोग होने का वर्णन संस्कृतके मूल उत्तर पुराणमें नहीं है। यहां सुशीलचन्द्रजीके अनुवादसे ली गई है । पर यह कथा जैन समाजमें भी प्रसिद्ध है । पद्मपुगणकारने भी रोग होना माना है।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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