________________
११६
दूसरा भाग । उचित समझा गया । अतः इस पाठ में उत्तरपुराणके आधारसे रामादिका वर्णन दिया जाता है। इन दो शास्त्रों में इतना भारी अंतर क्यों है ? इसका अभी कोई शास्त्रीय आधार नहीं मिला है, केवल युक्तियोंसे ही इसका समाधान किया जाता है । श्रीमान स्याद्वादवारिधि, स्वर्गीय पं० गोपालदासजीने एकवार इसका समाधान जैनमित्र पत्र द्वारा इस प्रकार किया था कि इन विरोधसे जैन धर्म तात्त्विक विवेचन पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता । - क्योंकि तात्त्विक विवेचनमें पुण्य और पाप ये दो पदार्थ माने हैं। इन दो पदार्थों के उदाहरण स्वरूप राम रावणादिकी कथाएं हैं । इन कथाओं में यदि किसी व्यक्ति मातापितादिके सम्बंध में यदि कुछ अंतर भी हुआ तो मी उससे पुण्य पापके स्वरूपमें कुछ बाधा नहीं आती । युक्ति और सिद्धांतकी दृष्टिसे पंडितजीक यह कथन पूर्णतया मान्य है । और धर्म मार्गमें युक्ति व सिद्धांत का ही अधिक महत्त्व है; पर इतिहासकी दृष्टिसे इन युक्ति पर अधिक आधार नहीं रखा जा सकता। कुछ भी हो जब तक इस विरोधके सम्बंध में कोई प्राचीन शास्त्रीय आधार नहीं मिलता तब तक हमें पं० गोपालदासजीकी युक्ति पर श्रद्धा रखकर अपने ग्रंथों का पठन पाठन करना ही उचित है । और यह सत्य भी है कि इस प्रकारके विरोधसे हमारे कल्याणके मार्ग में कुछ बाधा उत्पन्न भी नहीं हो सकती । ]
,
सगरका राज्य न रहने पर दशरथ अपने पुत्र राम लक्ष्मण सहित अयोध्या में आये। पहले बनारस में राज्य करते थे । अयोध्या ही में भरत और शत्रुघ्न उत्पन्न हुए । इन दोनोंकी माताओंके
।