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________________ प्राचीन जैन इतिहास | १३९ और कभी स्त्रियोंके स्वभावका विचार कर संदेह करने लगते और कभी लोकनिन्दाका ध्यान कर हृदयमें डर जाते । अन्तमें सीताको वनवास देनेका विचार कर रामने लक्ष्मणको बुलाया | और सर्व वृत्तांत कहे | लक्ष्मण, सीता पर दोष लगानेवालों पर क्रोधित हुए, परन्तु रामने उन्हें समझाया । और कहा कि हमारा कुल प्राचीन काल से पवित्र और ऊंचा रहा है । उस पवित्रताको बनाये रखनेके लिये मैंने निश्चय किया है कि सीता निकाल दी जाय । लक्ष्मणने सीताको कष्ट देनेके लिये बहुत मना किया । रामसे कहा कि टोकलानकी पर्वाह नहीं । लोकसम्प्रदाय विचारशील नहीं होता। उसके विचारों और उसकी की हुई निंदा पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिये । पर रामने लक्ष्मणकी विचार- पूर्ण बातोंको नहीं माना । और कृतांतवक सेनापतिको आज्ञा दी कि सीताको सर्व सिद्धक्षेत्रोंके दर्शन करवाकर सिंहनाद नामक वनमें छोड़ आओ । जिन रामने सीताके लिये रावणसे घोर युद्ध किया । जिन रामने सीताके वियोग में आंसू तक डाले, उन्हीं रामने अपने लघुभ्राता के समझाने पर भी मूर्ख लोक-समाजके आगे आत्म समर्पण कर दिया और अपनी आत्म-निर्बलता प्रगट कर सीताका त्याग किया। कोई चाहे इसे भाग्यकी घटना कहे, चाहे अन्य कुछ परन्तु हम इन सब बातोंके साथ साथ इसमें रामचंद्रकी निर्बलताका अंश अधिक पाते हैं और जब हम उनके अन्य कृत्यों को देखते हैं तब उनके समान वीरमें इस प्रकार की आत्म-निर्बलताका पाया जाना हमें आश्चर्यान्वित करता है । कुछ भी हो, रामने अपने वीरतामय चरित्र में इस निर्बलताको स्थान
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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