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________________ दूसरा भाग। करें तो रावण सन्धि करनेको तैयार है । परन्तु रामने यह नहीं माना और उस दूतको राजसमासे निकाल दिया। उन्होंने कहा कि हमें राज्यसे क्या प्रयो नन ? हमें सोता चाहिये । (४१) रावण आगेके युद्ध के लिये विचार करने लगा। अष्टान्हिकाके दिन होनेके कारण युद्ध बन्द था ! रावणने बहरू. पिणी विद्या सिद्ध करना प्रारम्भ किया । अपने महल में जो शान्तिनाथका मन्दिर था उसे खूब सनाया। नित्यपूजनका भार मन्दोदरीको दिया और नीचे लिखी घोषणा करानेकी आज्ञा मन्दोदरीको देकर आप विद्या सिद्ध करने बैठाः “सब लोग दयामें तत्पर रहें; यम-नियमके धारक बनें; सम्पूर्ण व्यापारोंको छोड़ कर जिनेन्द्र पूना करें; अर्थी लोगोंको मनवांछित धन दिया जाय; अहङ्कार छोड़ दिया जाय; गर्व न किया जाय; उपद्रवियोंके उपद्रव करनेपर उसे शांति पूर्वक सहन किया जाय । मेरा नियम पूर्ण होने तक जो इन आज्ञाओंको भंग करेगा वह दण्डका पात्र होगा। " इस प्रकारकी राज्यमें घोषणा करवाकर रावण जब विद्या सिद्ध करने बैठ गया तब कई एकोने रामको कहा कि यह सुअवसर है । सहजमें लङ्का पर कब्जा कर लिया जा सकता है । परन्तु वीर रामने कहा ऐसा करना अन्याय करना है। अत एव उन्होंने उसे अस्वीकार किया। तब लक्ष्मणकी सम्मतिसे कुछ लोगोंने लङ्कामें उपद्रव मचाया । उन उपद्रवियोंको यक्षेश्वरोंने भगाया और राम लक्ष्मणको उलाहना दिया । लक्ष्मणने कहा
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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