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________________ प्राचीन जैन इतिहास | ११९ (३४) रावणने रामको समीप आते देख अपनी सेना तैयार की । बड़े २ योद्धा, राजा, महाराजा रावणकी सेनामें आकर मिले । इस समय फिर विभीषणने रावणको समझाया। इस पर रावण के पुत्र इन्द्रजीतने विभीषणसे कहा कि तुम कायर हो । तब विभीषणने खूब फटकारा। इस पर रावण, विभीषण से युद्ध करनेको उद्यत हो गया । विभीषण भी एक मकानका स्तम्भ उखाड़ कर युद्धको उद्यत हुआ । पर मन्त्रियोंके समझानेसे युद्ध तो नहीं हुआ किन्तु रावणने विभीषणको नगरसे निकल जानेकी आज्ञा दी। विभीषण, रामकी सेनामें जाकर मिल गया । विभीषण के साथ ३० अक्षौहिणी दल था । (३५) रावणकी सेनामें ढ़ाई करोड़ राक्षसवंशी कुमार थे । जिस समय रावण की सेना रामकी सेनासे युद्ध करनेको चली और योद्धा गण अपने गृह से निकलने लगे तब किसी योद्धाको उसकी स्त्रीने अपने हाथोंसे वस्त्र पहिनाये, किसीने अपने पतिको शस्त्रास्त्रों से सजाया । प्रायः सब स्त्रियां अपने वीर पतियोंसे कहने लगीं कि युद्ध में शत्रुओंको जीतकर आना । भागकर मत आना ! तुझारे घावों सहित शरीरको देख कर हमें प्रसन्नता होगी ! अहा ! कैसी वीरताका समय था । कहाँ आजका भारत ! जिसमें कायरता और निर्बलताका साम्राज्य छा रहा है । युद्ध के नामसे लोग जङ्गलों में छिपते हैं । स्त्रियां माथा धुनती हैं । हे भारतभूमि ! हमारे वे वीरतामय, साहसमय, धैर्यमय दिन फिर कब फिरेंगे ? (३६) जब रावणकी सेना चली तब मार्ग में बहुत अपशकुन परन्तु रावणने उसकी कुछ पर्वाह न की । और युद्ध - क्षेत्र में 1 1
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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