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प्राचीन जैन इतिहास । ११३ आकाशसे देवोंने जयध्वनि की। वहांसे आकर बलवान् , परम प्रतापो, शूरवीर, राम, लक्ष्मणने विद्याधरोंकी एक न मानी और निश्चय किया कि लंकाके समाचार लेनेको हनुमान भेजे जाय । हनूमान बुलाये गये। रामसे मिलकर हनुमानको बहुत प्रसन्नता हुई।
(२७) जब हनुमान, रामकी आज्ञासे सीताके समाचार लेने लङ्काको चले तब मार्गमें राजा महेन्द्रसे युद्ध किया। ये हनुमानके नाना थे। उन्हें जीतकर आगे चले । एक दधिमुख नगरके वनमें अग्नि जल रही थी। उसी वनमें दो मुनि ( चारण ऋद्विधारी ) तप कर रहे थे । और तीन कन्याएँ तप कर रही थीं। हनुमानने समुद्रसे आकाश मार्गद्वारा जल मंगवाकर वर्षा करवाई और अग्नि शान्त की। फिर मुनियोंकी बन्दना कर कन्याओंसे तपका कारण पूंछा। उन्होंने कहा कि हमारे पिता इसी वनके समीपवाले नगरके राना हैं। किसी मुनिने उनसे कहा था कि जो सहप्रगति विघाघरको मारेगा वही इनका पति होगा। एक अंगारक नामक राजा हमपर आसक्त था। परन्तु पिताने उसके साथ पाणिग्रहण नहीं किया । तब हम साहसगतिका वृत्तांत जाननेके लिये मनोगामिनी विद्या सिद्ध करने यहां आई हुई हैं। अग्नि लगने पर भी निश्चल वृत्तिसे रहनेके कारण उन कन्याओंको विद्याकी सिद्धि हुई । हनुमान, साहसगतिके मारनेवाले रामका पता बतला कर लंकाकी ओर चल दिये। और कन्याओंका पिता कन्याओंको लेकर रामके पास गया और वहां जाकर उनका विवाह कर दिया।