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________________ १०८ दूसरा भाग। यहां पर रामचंद्रने एक रत्नमय रथ बनाया और तीनों इसी पर यात्रा करने लगे। (१९) यहांसे चलकर कोंचवा नदी पार की और दण्डकगिरिके पास ठहरे । इन दिनों मुख्य आहार फलादिकका ही था। यहां पर नगर बसानेका विचार किया परन्तु वर्षा ऋतु समीप आगई थी। इसलिये वर्षा ऋतुके बाद यह विचार काममें लानेका संकल्प कर यहां ही रहने लगे । एक दिन लक्षमण वनमें क्रीड़ाकर रहे थे कि एक अदभुत प्रकारकी सुगन्ध आई । आप उसपर मुग्ध होकर निघरसे सुगन्ध आ रही थी उसी ओर चल पड़े । कुछ दूर आगे एक बांसके बीडेके ऊपर सूर्यहास्य खड्ग दिखाई दिया । झपट कर आपने उसे ले लिया और उसकी आजमाइस करनेके लिये उसी बांसके बीड़े पर चलाया। बीड़ेके अन्दर खरदूषण (रावणका बहिनोई) का पुत्र शम्बुक उसी सूर्यहास्यकी प्राप्तिके अर्थ तपस्या कर रहा था । अतएव बीड़ेके साथ २ उसका भी सिर कट गया । ___ (२०) शम्बुककी माता प्रतिदिन पुत्रको भोजन देने आती थी। जब उसने अपने पुत्रकी यह दशा देखी तब उसे बड़ा कष्ट हुआ। और अपने पुत्रके शत्रुको वहीं खोनने लगी । उसने इन दोनों भाइयोंको जब देखा तब अपने पुत्रके संबन्धमें कहनेकी बजाय इन पर आसक्त हो गई । और अपनेको कुमारी बतलाकर पाणिग्रहणकी इच्छा प्रगट की। परन्तु चतुर राम, लक्ष्मण उसके जालमें नहीं आये । जब उसने अपना जाल इन पर चलते नहीं देखा तब पति खरदूषणके पाप्त आकर कहने लगी कि राम,
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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