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________________ ९.६ दुसरा भाग संसारकी ओर बाल्यवस्थासे ही उनकी रुचि कम थी । वे दिन में तीनवार जिनेन्द्रका दर्शनपूजन करते थे व दान देते थे । (६) राम चलते २ तापसियोंके आश्रम में पहुंचे। तापसियोंके आश्रम में स्त्रियां भी रहा करती थीं । उन लोगोंने रामका बहुत आविष्य सत्कार किया । वहांसे रामचन्द्र मालवदेशमें आये । इस समय घर छोड़े ४॥ मासके अनुमान हो गया था । मालवदेश की सगला सफला मूर्तिको देखकर इन्हें परम सन्तोष हुआ परन्तु इस देशकी सीमा में कुछ दूर तक आनाने पर भी जब इन्हें बस्ती नहीं मिली तब इन्हें कुछ सन्देह हुआ कि इस परमानन्द दायिनी भूमिमें मनुष्यों की बस्ती क्यों नहीं ? आखिर एक वृक्षके नीचे बैठकर लक्ष्मणको आज्ञा दी कि वृक्षपर से चढ़कर देखो कि कहीं आसपास बस्ती है या नहीं | लक्ष्मणने देखकर कहा कि नाथ ! समीपमें नगर तो बहुत विशाल दिख रहा है, परन्तु हे उजाड़ । मनुष्य एक भी नहीं दिखाई देता । केवल एक दरिद्री पुरुष शीघ्रता से इधर आ रहा है। रामने लक्ष्मणके द्वारा उस दरिद्रीको बुलवाकर पूछा कि नगर उजाड़ क्यों है । उसने कहा कि उज्ज - नीके राजा सिंहोदरका सामन्त वज्रकर्ण यहां रहता है । इस नगरका नाम दशांगपुर है | राजा वज्रकर्ण बहुत दुराचारी था । परन्तु एक दिन जैन साधुके उपदेशसे इसने दुराचारोंको छोड़ प्रतिज्ञा की कि में सिवाय जिनेन्द्रके अन्यको नमस्कार न करूंगा । परन्तु अपने स्वामी सिंहोदर के भयसे उसने यह चाल चली कि अंगूठी में एक जिन प्रतिमाको नमस्कार करता था । किसीने यह रहस्य सिंहोदरसे कह दिया । सिंहोदरने वज्रकर्णको बुलाया | परन्तु
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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