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________________ २८ कर्मप्रकृति ---- -- ----- -- -- -- -- ---- दुसु वेगे दिट्ठिदुगं,बंधेण विणा वि सुद्धदिट्ठिस्स। परिणमयइ जीसे, तं पगईइ पडिग्गहो एसा ॥२॥ मोहदुगाउगमूलपगडीण, न परोप्परंमि संकमणं । संकमबंधुदउबट्टणा, लिगाईणकरणाइं ॥३॥ अंतरकरणम्मि कए, चरित्तमोहे णुपुब्विसंकमणं । अन्नत्थ सेसिगाणं च, सव्वहिं सव्वाहा बंधे ॥४॥ तिसुआवलियासु, समऊणियासु अपडिग्गहाउसं जलणा। दुसु आवलियासु पढमठिईए सेसासु वि य वेदो॥ साइअणाईधुवअधुवा य सव्वधुवसंतकम्माणं । साइअधुवा य सेसा, मिच्छावेयणीयनीएहिं ॥६॥ मिच्छत्तजढाय,पडिग्गहम्मि सव्वधुवबंधपगईओ। नेया चउव्विगप्पा, साइ अधुवा य सेसाओ॥७॥ पगईठाणे वि तहा, पडिग्गहो संकमो य बोधव्यो। पढमंतिमपगईणं, पंचसु पंचण्ह दो वि भवे ॥८॥ नवगच्छक्कचउके, नवगं छक्कं च चउसु बिइयम्मि । अन्नयरस्से अन्नयरा, वि य वेयणीयगोएसु ॥९॥
SR No.022681
Book TitleKarmprakruti Mool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVanchayamashreeji
PublisherGirdharlal Kevaldas Dalodwala
Publication Year1962
Total Pages82
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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