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________________ राजनैतिक जीवन ८९ पीठ पर अम्बारी (गिल्लि)६७ रक्खी जाती, जिस पर बैठा हुआ मनुष्य दिखाई न पड़ता था। उन्हें स्तम्भ (आलाण) में बाँधा जाता और उनके पाँवों में मोटेमोटे रस्से पड़े रहते थे।६८ हाथियों की अनेक जातियाँ होती थीं। गंधहस्ति को सर्वोत्तम बताया गया है और वह हाथियों के झुंड का प्रमुख होता था तथा गुफा में भी गिर जाने पर उठ जाता था। श्रमण संघ के आचार्य की तुलना गंधहस्ती से की गई है। तं वयणं हिय मधुरं, आसासंकुरसमुब्भवं सयणो । समणवरगंधहत्थी, बेइ गिलाणं परिवहंतो ।।६९ महावत को मिंठ कहा गया है और उसकी गणना दुस्सीलों में की गई है।७० अश्वसेना ___हाथियों की भाँति घोड़ों का भी बहुत महत्त्व था। वे तेज दौड़ते, शत्रुसेना पर पहले से ही आक्रमण कर देते, शत्रु की सेना में घुसकर उसे विचलित कर देते, अपनी सेना को तसल्ली देते, और शत्रु द्वारा पकड़े हुए अपने योद्धाओं को छुड़ाते, शत्रु के कोष और राजकुमार का अपहरण करते, जिनके घोड़े मर गये हैं ऐसे सैनिकों का पीछा करते तथा भागी हुई शत्रु सेना के पीछे भागते थे। वसुदेवहिण्डी २ में कहा गया है कि सामान्य अवस्था में घुड़सवार सैनिक के हाथ में कोड़ा होता था लेकिन युद्धकाल में कोड़े के स्थान पर वह तलवार ग्रहण करता था। घोड़े कई किस्म के होते और वे विविध देशों से लाये जाते थे। कंबोज देश के 'आकीर्ण' और 'कन्थक' घोड़े प्रसिद्ध थे। आकीर्ण३ ऊँची नस्ल के होते, तथा कन्थक पत्थर आदि की आवाज से नहीं डरते थे।७४ चालीक देश में पाये जाने वाले ऊँची नस्ल के घोड़े अश्व कहे जाते, इनका शरीर मूत्र आदि से लिप्त नहीं होता था। बृहत्कल्पभाष्य में वट्टक्खुर (वृत्तखुर) वाले घोड़ों को उत्तम कहा गया है।७६ प्रतिवर्ष व्याने वाली घोड़ियों को 'थाइणि' कहा जाता था। घोड़ों को पालने व शिक्षित करने वाले को दमअ कहा गया है। पदाति सेना प्राचीन भारत में पैदल सैनिक सेना के प्रमुख अंग थे। प्राचीन जैन ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि चौथी शताब्दी ई. पू. से लेकर १२वीं शती ई. के अन्त
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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