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________________ राजनैतिक जीवन कितनी ही बार जैन साधुओं को भी दण्ड का भागी होना पड़ता। यदि उन्हें कभी कोई वृक्ष के फल आदि तोड़ते हुए देख लेता तो हाथ, पाँव या डण्डे आदि से उनकी तोडना की जाती, अथवा उनके उपकरण छीन लिये जाते, या उन्हें पकड़कर राजकुल के कारणिकों के पास ले जाया जाता, और अपराध सिद्ध हो जाने पर घोषणापूर्वक उनके हाथ-पैर आदि का छेदन कर दण्ड दिया जाता।४८ ___ अभिलेखीय तथा साहित्यिक साक्ष्य से पता चलता है कि पंचकल का निर्वाचन राजा द्वारा किया जाता था जो गाँव तथा नगर के मुकदमों की न्यायिक जाँच कर राजा, मंत्री तथा अन्य अधिकारियों के परामर्श से निर्णय भी देते थे। हर्षचरित्र में भी उल्लेख है कि प्रत्येक गाँव में पंचकुल पाँच अधिकारी गाँव के करण या कार्यालय के व्यवहार (न्याय और राजकाज) चलाते थे।५० सेना राज्य के अंदर शांति स्थापना के लिए और वाह्य आक्रमण से राज्य की सुरक्षा के लिए सेना का गठन अत्यन्त आवश्यक होता था। सैन्य बल को दण्ड कहा गया है।५१ सेनापति को दण्डनायक कहा गया है।५२ राजा अपने साम्राज्य को विस्तृत करने के लिए प्रायः युद्ध किया करते थे। युद्ध स्त्रियों के कारण भी लड़े जाते थे। जैन आचार्य कालक की साध्वी भगिनी सरस्वती५३ को उज्जैयिनी के राजा गर्दभिल्ल से अपहरण करके अपने अन्तःपुर में उठा ले गया जिससे कालकाचार्य ने ईरान के शाहों के साथ मिलकर गर्दभिल्ल से युद्ध किया। यह कहानी भाष्यकार के भी समय में चर्चित प्रतीत होती है क्योंकि आर्य कालक का प्रस्तुत ग्रन्थ में एक जगह उल्लेख आया है।५४ उज्जयिनी के राजा प्रद्योत और कांपिल्यपुर के राज्य दुर्मुख के बीच एक बहुमूल्य दीप्तिवान मुकुट के लिए युद्ध छिड़ गया क्योंकि इस मुकुट में ऐसी शक्ति थी कि उसे पहनने से दुर्मुख दो मुंह वाला दिखाई देने लगता था। प्रद्योत ने इस मुकुट की माँग की, लेकिन दुर्मुख ने कहा कि यदि प्रद्योत अपना नलगिरि हाथी, अग्निभीरुरथ शिवामहारानी और लोहजंघ पत्रवाहक देने को तेयार हो तो वह उसे मुकुट दे सकता है। इसी बात को लेकर दोनों में युद्ध हुआ।५५ सेना में चार प्रकार के बल शामिल होते थे- रथ, गज, अश्व और पदाति। परंपरागत चतुरंगिणी सेना के छिटपुट उल्लेख प्रस्तुत ग्रंथ भी प्राप्त होते हैं।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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