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________________ ८४ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन स्थानीय शासन प्राचीन भारत में ग्राम शासन की प्राथमिक इकाई होती थी। नगर अथवा राजधानी की भाँति यहाँ किलेबन्दी नहीं होती थी। एक नगर में बहुत से ग्राम होते थे। बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि मथुरा नगरी में उस समय ९६ गाँव थे।२१ ग्राम की सीमा के निर्धारण के संबंध में बताया गया है कि जहाँ तक एक ग्राम की गायें चरने के लिये जांय, अथवा जहाँ तक गाँव का घसियारा या लकड़हारा सुबह उठकर घास या लकड़ी काटे और शाम तक अपने निवास पर लौट आये, अथवा जहाँ तक गाँव के बच्चे खेलने के लिए जांय वहाँ तक उस ग्राम की सीमा होती थी। गाँव की खुद की चहारदीवारी से भी उसकी सीमा निर्धारित हो जाती थी। गाँव के छोर पर स्थित कुएँ एवं बगीचे से भी उसकी सीमा का निर्धारण हो जाता था। गाँव के मध्य में एक देवकुल यानी मंदिर होता था।२२ बृहत्कल्पभाष्य में ग्रामों के बारह प्रकार बतलाये गये हैं- उत्तानमल्लक, अधो मुखमल्लक, संपुटकमल्लक, उतानखण्डमल्लक, अधो मुखखण्डमल्लक, संपुटखण्डमल्लक, भिति, पडालिका, वलभी, अक्षवाटक, रुचक और काश्यपसंस्थित।२३ गाँवों में विभिन्न वर्ण और जातियों के लोग रहते थे, लेकिन ग्रामों में मुख्य रूप से एक ही जाति अथवा पेशेवाले रहा करते थे, जैसे- वैशाली नगरी तीन भागों में विभक्त थी- वंभणगाम, खत्तियकुण्डगाम और वाणियगाम। इनमें क्रम से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वणिक लोगों का निवास था। कुछ गाँवों में मयूर-पोषक२४ (मयूर को शिक्षा देने वाले) अथवा नट२५ रहा करते थे। चोरपल्लि में चोर रहते थे। सीमाप्रान्त के गाँव प्रत्यन्तग्राम (पंचतगाम) कहलाते थे, जो उपद्रवों से खाली नहीं थे।२६ कभी-कभी गाँवों में मारपीट होने पर लोगों की जान चली जाती थी।२७ ____ गाँवों के मध्य भाग में सभागृह होता था जहाँ गाँव के प्रधान पुरुष आराम से बैठ सकते थे।२८ गाँव के प्रधान को भोइअ (भोजिक) कहा जाता था।२९ भोजिक काफी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होता था। एक स्थल पर उल्लेख है कि राजा ने एक भोजिक से प्रसन्न होकर उसे ग्राम-मण्डल प्रदान कर दिया। ग्रामवासी भोजिक की सरलता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उनसे निवेदन किया कि अब हम पीढ़ी दर पीढ़ी तक आपके सेवक बन गये हैं, लेकिन धीरे-धीरे ग्रामवासियों ने उसका सम्मान करना छोड़ दिया। इस पर रुष्ट होकर भोजिक ने उन सबको दण्डित किया।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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