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________________ आर्थिक जीवन ५५ कपास सूत की फसलों में कपास (कप्पास; फलही) सबसे मुख्य थी। अन्य फसलों में रेशम, ऊर्णा (ऊन), क्षौम और सन का उल्लेख मिलता है।३५ शील अथवा शाल्मलि के वृक्षों से भी रेशमी सूत तैयार किया जाता था। विविध मसाले मुख्य रूप से वर्णित मसालों३६ में हल्दी (हरिद्रा), लौंग, मिर्च (मरिया), अदरक (शृंगवेर), लहसुन, मिर्चा, (पिप्पली), हींग, जीरा, कुपुम्भरी, पिण्डहरिद्रा एवं सरसों उल्लेखनीय हैं। पशुपालन प्राचीन भारत में पशु बहुत महत्त्वपूर्ण धन माना जाता था तथा गाय, बैल, भैंस और भेड़ राजा की बहुमूल्य सम्पत्ति गिनी जाती थी। पशुओं के समूह को व्रज (वय), गोकुल और संगिल्ल३७ कहा गया है। एक व्रज में दस हजार गायें रहती थीं। बैलों को हलों में जोतकर उनसे खेती की जाती थी और रहट में जोतकर खेतों की सिंचाई के लिये कुओं से पानी निकाला जाता।३८ उन्हें माल से भरी गाड़ी में जोतते, चाबुक से हाँकते, दाँतों से पूँछ काट लेते और आरी से मारते थे। ऐसी हालत में कभी अड़ियल बैल जुएँ को छोड़ अलग हो जाते थे जिससे गाड़ी का माल नीचे गिर पड़ता था।३९ गोपालन पर विशेष ध्यान रखा जाता था। आभीर (अहीर), गाय-भैसों को पालते-पोसते थे। इनके गाँव अलग होते थे।४० ग्वाले ध्वजा लेकर गायों के आगे चलते और गायें उनका अनुशरण करतीं। दूध से दही और नवनीत बनाने का उल्लेख प्राप्त होता है।४२ गाय अपने बछड़े से बहुत प्रेम करती और व्याघ्र आदि से संत्रस्त होने पर भी अपने बछड़े को छोड़कर नहीं भागती थी।४३ 'निशीथचूर्णि' से ज्ञात होता है कि उस समय हाथियों का नल (एक तृण), और इक्ष, भैसों को कमल पत्तियां, घोड़ों को हरिमन्थ (काला चना), मूंग आदि तथा गायों को अर्जुन आदि खाने के लिये दिये जाते।४ गाय, बैल और बछड़े गोशालाओं (गोमंडप) में रखे जाते थे फिर भी चोर (कूटग्राह) गोशालाओं में से रात के समय चुपचाप पशुओं की चोरी कर लेते थे।५ 'निशीथचूर्णि' में पशुओं की चिकित्सा के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं।६ भेड़ के ऊन से और ऊँट के बालों से जैन साधुओं के रजोहरण तथा कम्बल बनाये जाते थे।४७
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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