SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आर्थिक जीवन ५३ को अलग करते समय बैलों द्वारा उसके मर्दन तथा गाहन करने में सहायता ली जाती थी। धान्य फटकने के कार्य को सूप्पनिष्फाव कहा जाता था। स्वच्छ करने के पश्चात् अनाज को सम्बाहपल्लग, मुख° आदि संग्रहालयों में रखा जाता था। इस काल की एक प्रमुख फसल गन्ना या ईख थी, जिसको पेरकर गुड़ अथवा शक्कर बनाने के लिए कृषक एक प्रकार के यन्त्र का प्रयोग करते थे, जिसे 'कोल्हू' कहा जाता था।११ उसमें यंत्रपीडन नामक एक उपकरण यंत्र का नाम भी दिया है, जिसके द्वारा गन्ना, सरसों आदि पेरे जाते थे और जिसकी गणना १५ कर्मदानों में की गई है।१२ 'बृहद्कल्पभाष्य' में हल की तीन कोटियाँ बतायी गयी हैं- हल, कुलिय और दन्तालक।१३ इनमें कुलिय सम्भवतः घास काटने वाला एक काष्ठ औजार था, जिसकी लम्बाई लगभग दो हाथ थी और जिसके सिरे पर लोहे की धारदार कील लगी होती थी, और इसका प्रयोग सौराष्ट में किया जाता था।१४ सिंचाई उस समय कृषि अधिकांशतः वर्षा पर ही निर्भर थी। सिंचाई के कुछ कृत्रिम साधनों का भी उल्लेख मिलता है। जलवायु तथा प्राकृतिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग स्थलों पर सिंचाई के अलग-अलग साधन थे। सिंचाई के प्राकृतिक एवं कृत्रिम इन दो जल स्त्रोतों के आधार पर खेत भी दो भागों में बटे हुए थे(१) केतु और सेतु।१५ सेतु क्षेत्रों को रहट आदि कृत्रिम जल साधनों से सींचा जाता था, जबकि केतु में वर्षा जल से ही पर्याप्त धान्योत्पत्ति सम्भव थी।१६ 'बृहत्कल्पभाष्य'१७ में उल्लेख है कि लाट देश में वर्षा से सिन्धु देश में नदी से, द्रविण देश में तालाब से, उत्तरापथ में कुओं से, डिम्भरेल में महिरावण की बाढ़ से खेतों की सिंचाई की जाती थी। काननद्वीप में नावों पर धान रोपे जाते थे। मथुरा में खेती नहीं होती थी, वहां वाणिज्य व्यापार की ही प्रधानता थी। कहीं किसान लोग नाली (सारणी) के द्वारा बारी-बारी से अपने खोतों को सींचते थे। वे छिपकर भी अपने खेतों में पानी दे लेते थे।२८ जहाँ इनमें से कोई भी प्राकृतिक साधन उपलब्ध नहीं होते थे, वहाँ तालाब आदि के कृत्रिम जल से सिंचाई की जाती थी।१९ कृषि उत्पादन 'बृहदकल्पभाष्य' में सत्रह प्रकार के धान्यों का उल्लेख हुआ है- चावल, यव, मसूर, गेहूँ, मूंग, माष, तिल, चना, कंग, प्रियंगु, कोद्रव, मोठ, शालि, अरहर, मटर, कुलत्थ तथा शण।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy