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________________ सामाजिक जीवन से अधिष्ठित कहे गये हैं। विद्वेष, वशीकरण, उच्छेदन और रोग शान्त करने के लिए योग का प्रयोग करते थे। योग (पादलेपन आदि) सिद्ध होने के पश्चात् चरणों पर लेप करने से आकाश में उड़ा जा सकता था।१९९ चिकित्सा पद्धति पर भी इस ग्रंथ में थोड़ा प्रकाश डाला गया है। उल्लेख है कि बीमार पड़ने पर साधुओं को चिकित्सा के लिए दूसरों पर अवलम्बित रहना पड़ता था। पहले तो चिकित्सा में कुशल साधु द्वारा ही रोगी की चिकित्सा किये जाने का विधान है, लेकिन फिर भी यदि बीमारी ठीक न हो तो किसी अच्छे वैद्य को दिखाना चाहिए। आवश्यकता होने पर साधुओं को वैद्य के स्नान, शयन, वस्त्र और भोजन आदि की व्यवस्था भी करनी चाहिए। यदि वैद्य अपनी दक्षिणा माँगे तो साधु दीक्षा लेते समय जो धन निकुंज आदि में गाड़कर रखा हो उससे, अथवा योनिप्राभृत की सहायता से धन उत्पन्न कर वैद्य दक्षिणा देना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो यंत्रमय हंस अथवा कपोत आदि द्वारा उपार्जित धन वैद्य को दक्षिणा के रूप में देना चाहिए। शूल उठने पर अथवा विष, विसूचिका या सर्पदंश से पीड़ित होने पर साधुओं को रात्रि के समय भी औषधि सेवन करने का विधान है।२०० सन्दर्भ १. पी.वी.काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-१, पृ. ११९। २. बृहत्कल्पभाष्य, ३२६४। इनमें अंबहट और तन्तुण निम्न जाति के थे-जगदीश चन्द्र जैन, जैनागम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. २२२। ३. वही, गा. ३२६५, स्थानांग, ६/३५ ४. वही, गा. ४५२३ ५. वही, गा. १४५६ ६. 'भूतसंरक्षणं हि क्षत्रियाणां महानधर्मः'। कृत्यकल्पतरु, गृहस्थ पृ. २५३, यशस्तिलक, पृ. ९५ ७. बृहत्कल्पभाष्य, गा. ३२६५, जगदीशचन्द्र जैन, जैनागम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ २२९ ८. वही, गा. १२०५ ९. वही, गा. ६३०३। १०. वही, गा. ४२१९ व ४२२३
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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