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________________ सामाजिक जीवन वैद्यशास्त्र सम्मत चिकित्सा न करने पर राजा द्वारा वैद्य को दंड देने का भी उल्लेख है। एक राजवैद्य के मर जाने पर राजा ने उसके पुत्र को बुलाकर किसी निपुण वैद्य के पास जाकर वैद्य विद्या सीखने को कहा। वहां एक गलगंड रोगयुक्त बकरी के गले में फंसे ककड़ी के चुकड़े को निकालने के लिए अपने गुरु को बकरी के गले में वस्त्र डालकर गला मरोड़कर ककड़ी निकालता देखा और उसी को वैद्य - रहस्य समझ लिया। एक बार एक रानी को गलगंड हो गया। वैद्यपुत्र को रानी के पास लाया गया । वैद्यपुत्र ने पूछा रानी कहां-कहां गयी थी। लोगों ने वैद्यपुत्र के संतोष के लिए कहा- पिछवाड़े । वैद्यपुत्र ने रानी के गले में वस्त्र लपेटकर उसे ऐसा मरोड़ा कि वह मर गयी । यह देखकर राजा को क्रोध आया और उसने राजपुत्र को दण्डित किया । १८५ ४१ किसी राजा को अक्षिरोग हो गया। उसने वैद्य को दिखाया । वैद्य ने उसे आँख में आँजने की गोलियाँ दी। लगाते समय तीव्र वेदना होती थी । वैद्य ने पहले ही राजा से वचन लिया कि वेदना होने पर भी वह उसे दण्ड न देगा। वैद्य ने गोलियां राजा की आँख में आंज दी और राजा का अक्षिरोग नष्ट हो गया । १८६ बृहत्कल्पसूत्र के ग्लानद्वार में चिकित्सा पद्धति का सुंदर चित्रण किया गया है। कहा गया है कि ग्लान यानी रुग्ण साधु के समाचार मिलते ही उसका पता लगाने के लिये जाना चाहिए, वहाँ उसकी सेवा करने वाला कोई है कि नहींइसकी जाँच करनी चाहिए, जाँच न करने वाले के लिए प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। ग्लान साधु की श्रद्धा से सेवा करने वाले के लिए सेवा के प्रकार, ग्लान साधु की सेवा के लिए किसी की विनती या ज्ञाता की अपेक्षा रखने वाले के लिए प्रायश्चित्त का विधान, ग्लान की सेवा करने में अशक्ति का प्रदर्शन करने वाले को शिक्षा, ग्लान साधु की सेवा के लिए जाने में दुःख का अनुभव करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, उद्गम आदि दोषों का बहाना करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, ग्लान साधु की सेवा के बहाने से गृहस्थों के यहाँ से उत्कृष्ट पदार्थ, वस्त्र, पात्र आदि लाने वाले तथा क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त आदि दोषों का सेवन करने वाले लोभी साधु को लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, ग्लान साधु के पथ्यापथ्य का विधान, ग्लान साधु के विशेष असाध्य रोग के लिए उपवास की चिकित्सा, आठ वैद्यों १८७ के नाम (१) संविग्ग (२) असंविग्ग, (३) लिंगी, (४) श्रावक (५) संज्ञी (६) अनभिगृहीत असंज्ञी ( मिथ्या - दृष्टि), (७) अभिगृहीत असंज्ञी (८) परतीर्थिक की विस्तार से चर्चा है ।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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